Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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ग्रन्थ : चौदहवाँ अध्ययन
व्याख्या
गुरुकुलवासी निर्ग्रन्थ द्वारा ली जाने वाली शिक्षा की विधि १५वी गाथा से लेकर १७वीं गाथा तक गुरुकुल में निवास करने वाले साधु द्वारा ली जाने वाली शिक्षा की विधि का संक्षिप्त निरूपण किया गया है । गुरुकुल में रहने वाले साधु को विचार और आचार दोनों तरह का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य है । इसे ही शास्त्रीय परिभाषा में ग्रहण - शिक्षा और आसेवना- शिक्षा कहते हैं । वह शास्त्रीय अध्ययन भी करता है, वाचना देता है, आचार-विचार के सम्बन्ध में शंकासमाधान करता है, पठित पाठ को बार-बार दोहराता है, उस पर चिन्तन-मनन और आत्मिक दृष्टि से अनुप्रेक्षण भी करता है, और दूसरों को उस सम्बन्ध में उपदेश भी देता है । यह सब ग्रहण शिक्षा के अन्तर्गत है । और आसेवना - शिक्षा में ग्रहण की हुई विचार आचार सम्बन्धी बातों को जीवन में उतारता है, पारिपाश्विक वातावरण से प्रभावित एवं उत्साहित होकर तप संयम में वृद्धि करता है, शरीर, मन, इन्द्रियाँ, बुद्धि, हृदय इन सब पर नियन्त्रण करने की, कषायों और विषयों पर विजय पाने की साधना गुरु के निर्देशन में करता है। ध्यान, मौन, यौगिक साधना, तप, जप, स्वाध्याय आदि गुरु के निर्देशन में करता है, पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, नियमोपनियम आदि मुल-उत्तरगुणों की साधना भी सावधानी से करता है, कहीं भूल होने पर प्रतिक्रमण, आलोचना, आत्मनिन्दा, गर्हा और प्रायश्चित्त द्वारा आत्मशुद्धि भी करता है । यह सारा कोर्स, जिसमें कुछ थ्योरिटिकल और कुछ प्रेक्टिकल दोनों ही प्रकार का होता है, गुरुसान्निध्य में चलता है ।
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इसी के सन्दर्भ में शास्त्रकार कहते हैं- गुरुकुलवासी शिष्य प्रश्न करने योग्य काल तथा गुरुदेव की मनःस्थिति या अन्य परिस्थिति देखकर सम्यग्ज्ञानादि से परिपूर्ण गुरु से प्रजाओं - जन्मधारी १४ प्रकार के जीवों के सम्बन्ध में सविनय भक्ति पूछे। पूछने के बाद योग्य समाधान पाकर या मोक्षगामी वीतराग सर्वज्ञों के द्वारा कथित आगम या ज्ञान दर्शन- चारित्र, या मोक्ष अथवा संयमरूपी धन की शिक्षा प्राप्तकर आचार्यश्री का आदर-सत्कार एवं बहुमान करे । कैसे करे ? इसके लिए कहते हैं— उनकी बातों को कानों से सावधानीपूर्वक श्रवण करे, उनके द्वारा बताये गए आचार-विचार सम्बन्धी उपदेश को मन-मस्तिष्क में स्थापित करे, हृदय में धारण करे, और उसे क्रियान्वित करने का भरसक प्रदान करे । और केवली तीर्थंकर भगवन्तों द्वारा कथित मोक्षमार्गरूप या धर्मध्यानरूप उत्तम समाधि के उपदेश को सुनकर हृदय में पवित्रता एवं भक्ति के साथ स्थापित करके तदनुसार आचरण करने का प्रयत्न करे । गुरुदेव से उसने जो समाधिरूप मोक्षमार्ग सुना है, उसमें भलीभाँति सुस्थित होकर उसे जीवन में रमाले तथा मन-वचन-काया से कृत-कारित अनुमोदित रूप से उग समाधिमार्ग द्वारा आत्मा की सुरक्षा करे अथवा सदुपदेश देकर प्राणिमात्र की
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