Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
वह सिद्धान्त को न छिपाए । (ताई सुत्तमत्थं च णो करेज्ज) प्राणिमात्र का त्रातारक्षक सूत्र और अर्थ को अन्यथा न करे । (सत्थारभत्ती अणुवीइ वायं) साधु शिक्षा देने वाले (शास्ता) गुरु की भक्ति का ध्यान रखता हुआ सोच-विचारकर कोई बात कहे । (सुयं च सम्म पडिवाययंति) तथा गुरु से जैसा सुना है, सूत्र का वैसा ही अर्थ या व्याख्या दूसरों के सामने करे ॥ २६॥
(से सुद्धसुत्त उवहाणवं च) जो साधु यथार्थ रूप से आगमों का अध्ययन कर शुद्ध रूप से प्रतिपादन करता है, (जे तत्थ तत्थ धम्मं विदइ) जो साधु उत्सर्ग की जगह उत्सर्गरूप धर्म को एवं अपवाद की जगह अपवादरूप धर्म को अंगीकार करता है, (से आदेज्जवक्के) वही साधक ग्राह्यवचन (जिसका वचन लोग ग्रहण कर लें) होता है, अर्थात् उसी की बात मान्य होती है । (कुसले वियत्ते ) तथा वही शास्त्र के अर्थ (व्याख्या) करने में कुशल तथा बिना विचारे कार्य न करने वाला पुरुष (तं समाहि भासिउं अरिहइ) उस सर्वज्ञोक्त समाधि का प्रतिपादन कर सकता है ॥२७॥
भावार्थ
गुरुकुल में निवास करने वाले साधक सुबुद्धि से धर्म को समझकर दूसरे को उसका उपदेश देते हैं। इस प्रकार के त्रिकालज्ञ होकर समस्त संचित कर्मों का अन्त कर देते हैं। वे यथार्थ धर्मोपदेशक साधक अपने और दूसरे को कर्मपाश से मुक्त कराकर संसार से पार हो जाते हैं। ऐसे साधु प्रश्न का सम्यक् प्रकार से संशोधित पूर्वापर अविरुद्ध उत्तर देते हैं ॥१८॥
प्रश्न का उत्तर देते समय साधु शास्त्र के वास्तविक अर्थ को न छिपाए, तथा अपसिद्धान्त का आश्रय लेकर शास्त्र की व्याख्या न करे एवं यह भी अभिमान न करे कि मैं बहुत बड़ा विद्वान या शास्त्रज्ञ हूँ, मैं महान् तपस्वी हूँ, क्रियाकाण्डी हूँ, और न लोगों के समक्ष अपने गुणों को प्रकाशित करे। किसी कारणवश श्रोता यदि किसी बात को न समझे तो उसकी मजाक न उड़ाए तथा किसी व्यक्ति को साधु खुश होकर आशीर्वाद भी न दे ।।१।।
पाप से नफरत करता हुआ साधु प्राणियों के विनाश की आशंका से किसी को आशीर्वाद न दे तथा मंत्रविद्या का प्रयोग करके अपने संयम को खोखला न बनाए एवं वह जनता से किसी वस्तु की (भेंट, चढ़ावे आदि के रूप में) इच्छा न करे तथा वह असाधुओं के धर्म की भी प्रेरणा न दे ॥२०॥
किसी की हँसी-मजाक या जिन चेष्टाओं से हँसी छूटती हो, ऐसी चेष्टाएँ साधु न करे, तथा वह हँसी-मजाक में भी पापमय प्रवृत्तियों के लिए
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