Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समवसरण : बारहवाँ अध्ययन
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मानने के कारण जैनदर्शन द्विपक्षीय है, जबकि बौद्धदर्शन एकपक्षीय है, वह कर्म का फल इसी जन्म में मानता है, दूसरे लोक में नहीं ।
इस प्रकार अक्रियावादी लोकायतिक, बौद्ध और सांख्य वस्तुतः वस्तुस्वरूप को यथार्थरूप से नहीं जानते, उनका हृदय मिथ्यात्वमलपुंज से ढका हुआ है। अपने सिद्धान्त दूसरों को समझाने हेतु अनेक शास्त्रों की प्ररूपणा करते हैं। जैसा कि वे कहते हैं-पृथ्वी, जल, तेज और वायु ये ४ धात् या भूत हैं। इनसे भिन्न सुखदुःख भोक्ता कोई आत्मा नहीं है। तथा ये पदार्थ भी विचार न करने से सत्य-से प्रतीत होते हैं, परन्तु तत्त्वदृष्टि से सब मिथ्या हैं, क्योंकि सभी पदार्थ स्वप्न, इन्द्रजाल, मृगतृष्णा, दो चन्द्रमा दिखना आदि के समान प्रतिभासरूप हैं। सभी पदार्थ क्षणिक हैं, आत्मा से रहित हैं, तथा सर्वशून्यता-दृष्टि से मुक्ति प्राप्त होती है, उसी मुक्ति की प्राप्ति के लिए शेष भावनाएँ की जाती हैं।
इस प्रकार आत्मा को क्रियारहित मानने वाले नाना प्रकार के शास्त्रों का हवाला देते हैं । वस्तुतः ये लोग वस्तुस्वरूप से अनभिज्ञ हैं। इनके दर्शनों का आश्रय लेकर बहुत-से लोग अरहट की तरह अनन्तकाल तक संसार चक्र में भ्रमण करते हैं।
लोकायतिक सर्वशून्यतावाद मानते हैं, पर सर्वशून्य में कोई प्रमाण नहीं है। 'सब पदार्थ असत् हैं,' यह बात युक्ति से सिद्ध की जाती है, परन्तु वह युक्ति भी यदि असत् है, तो किसके बल पर पदार्थों की असत्ता सिद्ध की जाएगी? यदि युक्ति को सत्य माने तो सभी पदार्थ सत्य हैं।
___अगली गाथा (नं० ७) में शास्त्रकार सर्वशून्यतावादी के मत का निरूपण करते हैं -सूर्य सर्वजनप्रत्यक्ष दिनमणि एवं जगत् के दीपक के समान है एवं वह दिन आदि काल का विभाग करता है। परन्तु सर्वशून्यतावादी के मत से जब सूर्य ही नहीं है, तो उसके उदय, अस्त की तो बात ही क्या ? आकाश में जलता हुआ तेजोमंडल दिखाई तो देता है, परन्तु भ्रान्त पुरुषों को दिखाई देने वाली मृगतृष्णा के समान है। चन्द्रमा भी शुक्लपक्ष में बढ़ता नहीं, कृष्णपक्ष में घटता भी नहीं। जल पर्वतों के झरनों से गिरता और बहता नहीं, निरन्तर गतिशील हवा भी नहीं चलती। कहाँ तक कहें, सौ बातों की एक बात यह है कि यह सारा दृश्यमान संसार या पदार्थ माया, स्वप्न और इन्द्रजाल के समान मिथ्या है।
अब सर्वशून्यतावादियों के मत का खण्डन करते हुए ८वीं गाथा में शास्त्रकार दृष्टान्त देकर कहते हैं ---'जहाहि अंधे .. पस्सति निरुद्धपन्ना' जैसे जन्मान्ध पुरुष या बाद में दृष्टिरहित हुआ पुरुष दीपक, मशाल आदि के प्रकाशों के साथ में होते हुए भी घट-पटादि पदार्थों को देख नहीं सकता वैसे ही अक्रियावादी विद्यमान घटपटादि पदार्थों तथा उनकी स्पन्दन आदि क्रियाओं को देख नहीं सकता, क्योंकि
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