Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
याथातथ्य : तेरहवाँ अध्ययन
६०३
कार जाति कुलाभिमानी साधकों को लक्ष्य में लेकर कहते हैं- 'न तस्स जाई कुलं व ताणं, नन्नत्थ विज्जाचरणं सुचिष्णं ।' आशय यह है, कि पालन किया हुआ श्रुतचारित्ररूप धर्म ही मनुष्य को दुर्गति में जाने से तथा विविध दुःखों से बचा सकता है । इसे समझ - सोचकर यथोक्त धर्माचरण में लगो, व्यर्थ के जाति आदि के मद के नशे में न बहो । यहाँ जाति और कुछ शब्द उपलक्षण हैं, दूसरे भी जो मद के स्थान हैं, वे भी दुर्गति या दुःखों से रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं, यह जान लेना चाहिए । माता से उत्पन्न होने वाली जाति है और पिता से उत्पन्न होने वाला कुल है। श्रुतचारित्ररूप धर्म के सिवाय ये कोई भी रक्षा नहीं कर सकते, उक्त धर्म से हीन और संसारभ्रमण के कारणों को अपनाने वाला जो पुरुष दीक्षा लेकर भी पुनः गृहस्थी के आरम्भ समारम्भयुक्त कार्यों में प्रवृत्त हो जाता है, वह गया-बीता साधक कर्मों के क्षय करने या कर्मबन्धनों को काटने का अवसर मिलने पर भी न तो कर्मक्षय कर पाता है, न कर्मबन्धनों को काटकर मुक्त हो पाता है । वह पुनः चौरासी लाख जीवयोनियों में भ्रमण करता है ।
मूल पाठ
निक्किचणे भिक्खू सुलूहजीवी, जे गारवं होइ सिलोगगामी । आजीवमेयं तु अबुज्झमाणो, पुणो पुणो विप्परियासुर्वेति ॥ १२ ॥ जे भासवं भिक्खु सुसाहुवाई, पडिहाणवं होइ विसारए य आगाढपणे सुविभावियप्पा, अन्न जणं पन्नया परिहवेज्जा ||१३|| एवं ण से होइ समाहिपत्त, जे पन्नवं भिक्खु विउक्क सेज्जा । अहवाऽवि जे लाभमयावलित्ते, अन्न जणं खिसति बालपन्न ||१४|| पन्नामयं चेव तवोमयं च णिन्नामए गोयमयं च भिक्खू आजीवगं चेव चउत्थमाह से पंडिए उत्तमपोग्गले से एयाइं मयाई विगिच धीरा, ण ताणि सेवंति सुधीरधम्मा
1
।। १५॥
,
।
ते सव्वगोत्तावगया महेसी, उच्च अगोत्तं च गति वयंति ॥ १६ ॥
संस्कृत छाया
निष्किंचनो भिक्षुः सुरूक्षजीवी, यो गौरववान् भवति श्लोककामी । आजीवमेतत्त्वबुध्यमानः पुनः पुनो विपर्य्यासमुपैति ।।१२।। यो भाषावान् भिक्षुः सुसाधुवादी, प्रतिभानवान् भवति विशारदश्च । आगाढ़प्रज्ञः सुविभावितात्मा, अन्यं जनं प्रज्ञया परिभवेत्
॥१३॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org