Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
उस समय उसे शरीर, शिष्य-शिष्या, भक्त-भक्ता, संघ-मकान आदि की मोहमाया घेर लेती है और वह चिड़चिड़ा व देहासक्त होकर बीमारी, अशक्ति या वृद्धता के बहाने से अनेषणीय, अकल्पनीय या दोषयुक्त आहार लेने लगता है, कषाय भी भड़क उठती हैं, अत: समाधिपूर्वक मरण या संलेखना-संथारापूर्वक मृत्यु को हँसते-हँसते चाहने या स्वीकारने के बदले वह आर्तध्यान या चिन्ताआदिरूप दुर्ध्यान करते हुए मृत्यु को स्वीकार करता है । स्वीकार क्या करता है, मृत्यु उस साधक को न चाहते हुए भी जबरन उठा ले जाती है, वह अपनी जिंदगी भर की साधना की कमाई को चौपट कर देता है । इसलिए शास्त्रकार का कहने का तात्पर्य यह है कि जब अन्तिम समय आए उससे पहले ही सम्यग्दर्शन एवं ज्ञान से सुशोभित महाप्राज्ञ, धीर एवं शान्त साधु आस्रवद्वारों को बन्द कर दे, तथा एषणीय, कल्पनीय एवं निर्दोष आहार ही ले, और जब मृत्यु का अवसर आए तो शन्ति एवं समाधिपूर्वक हँसतेहँसते मृत्यु का आलिंगन करे, समाधिमरण या पण्डितमरण की आकांक्षा करे यही केवलज्ञानी प्रभु का मत है । इस मत (मार्ग) पर चलकर तीनों काल में साधु निःसंदेह मोक्ष प्राप्त कर सकता है । 'त्ति' शब्द समाप्तिसूचक है, 'बेमि' का अर्थ पूर्ववत् है ।
___ इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र का एकादश मार्ग नामक अध्ययन अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ।
एकादश अध्ययन समाप्त।
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