Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
समवसरण : बारहवाँ अध्ययन
समवसरण अध्ययन का संक्षिप्त परिचय ग्यारहवें मार्ग नामक अध्ययन की व्याख्या की जा चुकी है । अब बारहवें अध्ययन में प्रवेश हो रहा है । ग्यारहवें अध्ययन में यह बताया गया है कि कुमार्ग छोड़ने से सम्यकमार्ग प्राप्त होता है, अतः कुमार्ग छोड़ने वाले को पहले उसके स्वरूप का परिज्ञान होना चाहिए, इस दृष्टि से कुमार्ग का स्वरूप बताने हेतु इस अध्ययन का प्रारम्भ किया जा रहा है । इस अध्ययन का नाम है - समवसरण अध्ययन | इसमें कुमार्ग की प्ररूपणा करने वाले क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी इन चारों के समवसरणों का निरूपण है । यहाँ देवादिकृत समवसरण अथवा समोसरण (तीर्थंकरों की धर्मसभा ) विवक्षित नहीं है । नियुक्तिकार ने समवसरण का अर्थ किया है - सम्यक् - एकीभाव से एक जगह एकत्र होना, सम्मेलन या मिलन अथवा संगम होना समवसरण है । अर्थात् प्रस्तुत अध्ययन में विविध प्रकार के मत (वाद) प्रवर्तकों या मतों का संगम या सम्मेलन है ।
निक्षेप की दृष्टि से समवसरण के अर्थ
नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव यों समवसरण के ६ निक्षेप होते हैं । नाम और स्थापना समवसरण का अर्थ तो सुगम है । द्रव्यसमवसरण ज्ञशरीर, और भव्यशरीर से व्यतिरिक्त सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से तीन प्रकार का है। सचित्त जीवों में द्विपद (मनुष्य), चतुष्पद ( गौ आदि) और अपद (वृक्ष आदि) का इकट्ठा होना सचित्त - समवसरण है । लोह, सूखी लकड़ी आदि अचित्त वस्तुओं का एकत्र होना या द्वयणुकों का सम्मिलन अचित्त- समवसरण है । मिश्र वस्तुओं में सेना आदि का समवसरण समझना चाहिए । विवक्षावश जिस स्थान में पशुओं का मेला या मनुष्यों का मेला होता है, या जहाँ समवसरण की व्याख्या की जाती है, उसे क्षेत्र की प्रधानता के कारण क्षेत्र समवसरण कहते हैं । इसी प्रकार काल - समवसरण समझ लेना चाहिए | औदयिक, औपशमिक क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक इन ६ प्रकार के भावों का संयोग होना भाव समवसरण कहा गया है । नियुक्तिकार ने दूसरी तरह से भी भावसमवसरण का निरूपण किया है'जीवादि पदार्थ हैं, यह जो कहते हैं, वे क्रियावादी हैं, इसके विपरीत जो यह कहते हैं'जीवादि पदार्थ नहीं हैं,' वे अक्रियावादी हैं, 'जो ज्ञान को नहीं मानते हैं, ' वे अज्ञान
८४६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org