Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
जाने पर अत्यन्त पीड़ा होगी । साधुत्व की साधना समाप्त हो जाएगी । इसलिए मधारी न बने, यह सूत्र मानसिक संयम के लिए दिया ।
इस प्रकार का चतुःसूत्रात्मक संयमरूप अनुत्तरधर्म जानकर उसे क्रियान्वित करने का अहर्निश प्रयत्न करे । यह इस गाथा का आशय है ।
मूल पाठ छन्न ं च पसंसं णो करे, न य उक्कोसपगासं माहणे ।
स सुविवेगमाहिए, पणया जेहि सुजोसियं धुयं ॥२६॥ संस्कृत छाया
छन्नं च प्रशस्यं च न कुर्यान्न चोत्कर्ष प्रकाश माहनः । तेषां सुविवेक आहितः प्रणताः यैः संजुष्टं धुतम् ||२६||
अन्वयार्थ
(माणे) अहिंसाधर्मी साधु (छ्श ) माया, (पसं सं ) लोभ, ( उक्कोस ) मान, ( पगासं च ) और क्रोव (जो करे ) न करे । ( जेहि) जिन्होंने (धुयं ) आठ प्रकार के कर्मों के नाशक संयम को ( सुजोसियं) अच्छी तरह सेवन किया है, (तेसि ) उन्हीं का (सुविवेगं आहिए ) उत्तम विवेक प्रसिद्ध हुआ है । ( पणया) और वे ही धर्म में रत हैं, अथवा धर्म के प्रति प्रणत-धर्मनिष्ठ हैं ।
भावार्थ
अहिंसाप्रधान साधक, क्रोध, मान, माया और लोभ न करे । जिन्होंने आठ प्रकार के कर्मों के नाश करने वाले संयम का अच्छी तरह सेवन किया है, उन्हीं का उत्तम विवेक जगत् में प्रसिद्ध हुआ है और वे ही धर्मनिष्ठ पुरुष हैं ।
व्याख्या
कषाय-विजयी ही धर्मनिष्ठ विवेकी संयमी
इस गाथा में सुसंयमी, सुविवेकी और धर्मनिष्ठ साधु की पहिचान के लिए कषायविजय आवश्यक बताया है ।
'छन्नं पसंसं णो करे न य उक्कोसपगासं माहणं' - यहाँ 'छन्नं' का अर्थ अपने अभिप्राय को छिपाना है, इसलिए माया है, पसंसं- प्रशस्य का अर्थ है - जिसे सभी लोग बिना किसी आपत्ति के आदर दें । इसलिए प्रशस्य यहाँ लोभ अर्थ में है । उत्कर्ष मान का नाम है, क्योंकि तुच्छ प्रकृति वाले पुरुष को यह जाति आदि मदस्थानों के द्वारा मत्त बना देता है। प्रकाश नाम क्रोध का है, क्योंकि जब क्रोध आता है, तब वह मुख, दृष्टि, भ्रूभंग आदि विकारों से प्रगट हो जाता है ।
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