Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र से बींध देते हैं, उनका गला दबोचकर जमीन पर पटक देते है तथा उनका मुंह नीचा करके बीच में से ऊपर उठा कर आकाश तल में छोड़ देते हैं।
पहले मुद्गर वैगरह से घायल, फिर तलवार आदि से अंग-भंग किये हुए उन मूच्छित नारकों को फिर वे महापापी परमाधार्मिक कर्पणी नामक शस्त्र विशेष से काटते हैं, चीरकर टुकड़े-टुकड़े करते हैं। इस प्रकार चीर-चीर कर वे नारकीय जीवों के मूग की दाल के बराबर टुकड़े कर देते हैं । तथा बीच में से चीरे गए नारकीय जीवों के वे पापी असुर फिर टुकड़े-टुकड़े करते हैं यह यातना अम्बर्षि नामक असुरकुमार नरकभूमि में नारकों को देते हैं।
. तीसरे श्याम नामक असुर परमाधार्मिक तीव्र असातावेदनीय के उदय से वर्तमान दुरवस्था को प्राप्त उन पुण्यहीन नारकीय जीवों के अंगोपांगों का छेदन करते हैं, पर्वत से नीचे वज्र भूमि में गिराते हैं, शूल आदि से उन्हें बींध डालते हैं, सुई आदि से उनके नाक में छेद कर देते हैं, फिर रस्सी आदि से उन क्र रकर्मा नारकों को बाँधते हैं। तथा उस जगह लता (चाबुक) के प्रहार से चमड़ी उधेड़ देते हैं। यों शातन, पातन, बन्धन, वेधन, आदि अनेक प्रकार के दुःख उन पूर्वपापकृत नारकों को श्याम नामक नरकपाल देते हैं।
सबल नामक नरकासुर पापकर्मों के उदय से उत्पन्न होने वाले नारकों को खुशी से उछलते हुए कष्ट देते हैं । वे उन नारकियों की आँतें काट कर उनमें स्थित मांसविशेष रूप फिप्फिस को तथा हृदय को एवं हृदय में रहने वाले कलेजे को चीरते हैं । पेट की आँतों और चमड़ी को खींचते हैं । इस तरह नाना उपायों से शरण रहित नारकीय जीवों को वे तीव्र वेदना देते हैं, भयंकर पीड़ा उत्पन्न करते हैं।
रौद्र नामक नरकपाल अपने नाम के अनुसार अति क्रूर होकर तलवार, भाला, बल्लम आदि अनेक शस्त्रों से अशुभ कर्मोदय को प्राप्त नारकों को पीड़ा देते हैं।
उपरुद्र नामक नरकपाल नारकों के सिर, बाहों, जाँघ, हाथ और पैर आदि अंग-प्रत्यंगों को तोड़-मोड़ देते हैं तथा करवत से चीरते हैं। वस्तुतः ऐसा कोई दुःख नहीं, जिसे वे पापी न देते हों।
काल नाम के नरकपाल दीर्घचुल्ली, शुण्ठक, कन्दुक और प्रचण्डक नाम की तीव्र ताप वाली भट्टियों में नारकों को पकाते हैं। तथा ऊँट के आकार की कुभी में एवं लोहे की कड़ाही में नारकी जीवों को डालकर जीवित मछली की तरह वे पकाते हैं।
महाकाल नामक पाप-कर्मरत असुर नाना उपायों से नारकों को पीड़ा देते हैं। जैसे कि वे नारकी जीवों को काटकर उसमें से कौड़ी के बराबर माँस का टुकड़ा निकालते हैं, फिर पीठ की चमड़ी को छीलते हैं और जो नारक पहले मांसाहारी थे, उन्हें उनका ही वह माँस खिलाते हैं।
असि नामक नरकपाल अशुभ कर्म के उदय से दुरवस्था को प्राप्त नारकों के
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