Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
बीच-बीच में कहीं-कहीं इनसे विपरीत सुशील जनों के आचार-विचार का भी वर्णन किया गया है । अतः कुशीलपरिभाषा' का अर्थ हुआ - कुशील जनों के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से सभी पहलुओं से किया गया भाषण - कथन या निरूपण । शील, अशील और कुशील का निक्षेप दृष्टि से अर्थ
सामान्यतया शील का अर्थ स्वभाव, सदाचार, ब्रह्मचर्य एवं आचार-विचार होता है । शील के सम्बन्ध में चार निक्षेप किये गये हैं-नामशील, स्थापनाशील, द्रव्यशील और भावशील नाम स्थापना सुगम हैं । द्रव्यशील वस्त्र, भोजन, आभूषण आदि के विषय में इस प्रकार है -जो मनुष्य फल की अपेक्षा ( परवाह ) न करके स्वाभाविक रूप से या स्वभाव से ही जिस द्रव्य का या जिस क्रिया का सेवन करता है, अथवा जिस वस्त्र, भोजन आदि के सेवन करने की आवश्यकता जिस समय नहीं है, उसकी परवाह न करके जो स्वभाव से उस पदार्थ का सेवन करता है अथवा उसी में अपने चित्त को संलग्न रखता है, यह द्रव्यशील है । अथवा चेतन और अचेतन जिस द्रव्य का जो स्वरूप है, उसे भी द्रव्यशील कहते हैं ।
भावशील दो प्रकार का है— ओघशील और आभीक्ष्यसेवनाशील । ओघ कहते हैं - सामान्य को । जो व्यक्ति सामान्यतया सावद्ययोगों से विरत (निवृत्त) है, अथवा जो विरताविरत है, वह शीलवान है या ओघ से भावशील है। जो इसके विपरीत है, वह अशीलवान या भाव - अशील है । अभीक्ष्यसेवना अर्थात् निरन्तर या बार-बार सेवन करने की अपेक्षा से धर्म के सम्बन्ध में प्रशंसा, आचार या विचार का अनुष्ठान करना भावशील है। सतत अपूर्व ज्ञान का उपार्जन करते रहना, दर्शन को पुष्ट करते रहना, उपशमप्रधान चारित्र की आराधना करते रहना, विशिष्ट तप या अभिग्रह आदि करते रहना भावशील है। भाव अशील और भाव कुशील में अन्तर यह है कि अशील न तो शील- पालन या शील में प्रवृत्त होने का संकल्प करता है, न किसी धर्म सम्बन्धी विचार-आचार का अनुष्ठान करता I जबकि कुशील शीलपालन या शील में प्रवृत्त तो होता है, लेकिन होता है अशुद्ध रूप से, विपरीतरूप से । अप्रशस्त भावशील धर्म की ओट में अधर्म में प्रवृत्ति करता है, क्रोधादि कषायों, चोरी, परनिन्दा, कलह, आक्षेप, मिथ्यादोपारोपण, दम्भ आदि में प्रवृत्त होता है । इस प्रकार जो उपशमप्रधान चरित्र के विपरीत चलते हैं, वे भाव दुःशील या कुशील कहलाते हैं। वैसे तो कुशील के अगणित प्रकार हो सकते हैं, किन्तु यहाँ उन सभी की विवक्षा नहीं है, न उन सभी के वर्णन का अवकाश है । इस अध्ययन में संक्षेप में नपे-तुले शब्दों में कुछेक विवक्षित कुशीलजनों के सम्बन्ध में
१ परि-समन्तात् भाष्यन्ते निरूप्यन्ते प्रतिपाद्यन्ते तदनुष्ठानतस्तद्विपाकदुर्गतिगमनतश्चेति परिभाषा, कुशीलानां परिभाषा -- कुशीलपरिभाषा ।
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