Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
इस वाक्य का एक अर्थ यह भी हो सकता है कि समस्त झंझटों - झमेलों को छोड़कर, मुनि एकमात्र निर्वाण की साधना में ही अपने आप को जुटा दे । निर्वाण को ही एक मात्र साध्य मानकर उसकी साधना करे, उसकी ही प्रार्थना करे ।
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पूर्व गाथाओं में बताई हुई निषिद्ध बातों तथा अतिमान, माया एवं ऋद्धिरस-सातारूप समस्त गौरवों-विषय-भोगों को भली-भाँति समझकर उनका त्याग करे । समस्त गौरव या क्रोधादि कषाय संसारवृद्धि के कारण हैं, कर्मबन्धन को बढ़ाने वाले हैं, साधुधर्म का लक्ष्य है— कर्मों का सर्वथा क्षय करना । अतः लक्ष्य – समस्त कर्मक्षयरूप मोक्ष या निर्वाण तक पहुँचने के लिए कर्मबन्धन के कारणभूत समस्त विकारों, समस्त सिद्धान्तविरुद्ध आचार-विचारों को छोड़-छाड़कर एकमात्र मोक्ष की दिशा में कूच करे । यही इस गाथा का तात्पर्य है ।
'त्ति' शब्द समाप्ति अर्थ में है, 'बेमि' का अर्थ पूर्ववत् है ।
इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र का नवम धर्म नामक अध्ययन अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ ।
॥ धर्म नामक नवम अध्ययन समाप्त ॥
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