Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
वही समाधि को प्राप्त है । (लेस्सं समाहट्टु परिव्वज्जा) साधु शुद्ध लेश्या को ग्रहण करके संयम में प्रगति करे । (हिं न छाए, न वि छायएज्जा) साधु घर न छावे, और न दूसरे से छवावे । (संमिस्भावं पयहे पयासु ) साधु स्त्रियों से मिलना-जुलना या संसर्ग छोड़ ।
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भावार्थ
जो साधु वचन से गुप्त रहता है, समझ लो, वह भावसमाधि को प्राप्त है । साधु शुद्ध लेश्या को ग्रहण करके संयम का अनुष्ठान करे । वह घर को न स्वयं छाए और न ही दूसरों से छवाए । तथा स्त्रियों से मेल-जोल या सम्पर्क न करे ।
व्याख्या
समाधिप्राप्त के कुछ लक्षण
इस गाथा में समाधिप्राप्त साधक को पहचानने के लिए कुछ बाह्य चिह्न बताए हैं - ( १ ) वचन से गुप्त हो ( २ ) शुद्ध लेश्या को ग्रहण करके चलता हो, (३) घर को छाने व छवाने के प्रपंच से दूर हो, (४) स्त्रियों से मेलजोल न रखे । वास्तव में भावसमाधि के लिए ये चारों बातें अत्यन्त उपयोगी हैं । जो अधिक बोलेगा, दूसरों से गपशप लगाने में समय खोएगा वह समाधि को खो देगा, ज्ञानदर्शन - चारित्र की आराधना का समय गँवाकर, वह समाधि को कैसे प्राप्त कर सकेगा ? फिर अधिक बोलने से या सोच-विचारकर धर्मयुक्तवाणी न बोलने या असम्बद्ध बोलने से सुननेवाले के मन में कलह, विवाद, झगड़ा, वैमनस्य एवं ईर्ष्याद्वेष पैदा हो जाने का अंदेशा है । कोई कह पकता है कि मौन तो गंगे या तिच पशु आदि रखते हैं, क्या वे समाधि प्राप्त कर लेंगे? इसके उत्तर में ही शास्त्रकार कहते हैं - लेसं समाहट्टु परिव्वज्जा- जो विचारपूर्वक शुद्ध लेश्यासहित मौन रखता है, या वचनगुप्ति से रहता है, संयम में प्रवृत्ति करता है, वही समाधिभाव पा सकता है, जिसके मौन के साथ क्रूर लेश्या है, या संयम का कोई विचार नहीं है, उसका मौन अनर्थक है । साथ ही जब साधु घरबार छोड़कर है, गृहस्थों के द्वारा अपने उपयोग के लिए बनाये गये मकान में रहता है, तब उसे घर को छाने - छवाने के प्रपंच की जरूरत ही छाने - छवाने या लीपने पोतने की तो उसे जरूरत होती है, जिसे घर बसाना हो, स्थायीरूप से रहना हो, अपने स्वामित्व का मकान बनाना हो, यह सब साधु के लिए अनावश्यक एवं अकल्पनीय है । तथा स्त्रियों के साथ भी मेलजोल करके साधु को क्या लेना-देना है ? बल्कि उनके साथ अधिक घुलने-मिलने से ब्रह्मचर्य को उसी तरह खतरा है, जैसे घी के पास आग के रहने से घी के पिघल जाने या फुक जाने
अनगार बन गया
कुछ समय के लिए
क्या है ? घर को
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