Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समाधि : दशम अध्ययन
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भावार्थ प्रव्रज्या ग्रहण किया हुआ साधक अपने जीवन में निरपेक्ष होकर रहे । वह शरीर पर से ममत्व का व्युत्सर्ग (त्याग) करे । तथा वह अपनी तपश्चर्या के फल की कामना (निदान) न करे तथा सांसारिक झंझटों से अलग रहकर जीने और मरने की इच्छा न रखता हआ विचरण करे।
व्याख्या
आदर्श तपःसमाधि के पाँच मूलमंत्र इस गाथा में अध्ययन का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार तपस्या से प्राप्त होने वाली भावसमाधि का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। इसके लिए शास्त्रकार ने ५ मूलमन्त्र आदर्श तप:समाधि के रूप में प्रस्तुत किये हैं--(१) प्रव्रज्या ग्रहण करके साधु अपने जीवन में निरपेक्ष हो जाय, (२) देह पर ममत्व का विसर्जन करे, (३) अपनी तपस्या के फल के रूप में भोगाकांक्षा (निदान) न करे, (४) सांसारिक झंझटों से अलग रहे, और (५) न जीवन की आकांक्षा करे, न मृत्यु की । साधु अगर अपने में किसी से कुछ अपेक्षा रखेगा तो उसकी अपेक्षा पूरी न होने पर उसे दुःख होगा, अपेक्षा पूरी हो गई तो लोभ और परावलम्बन बढ़ेगा। इसलिए निरपेक्षता ही आदर्श समाधि का पहला मंत्र है। दूसरा है -- काय-व्युत्सर्ग। इसका अभ्यास हो जाने पर साधु कहीं भी कैसे भी निकृष्ट स्थान में भी संतोष से रह सकता है। तीसरा मंत्र है । अपनी साधना के फलस्वरूप भोगाकांक्षा करना, सौदेबाजी है और यह सौदा भी घाटे का है। इसलिए साधु को निदान (नियाणा) से दूर रहना चाहिए । चौथा समाधिमंत्र है -- सांसारिक झंझटों से मुक्त रहे । वास्तव में जब साधु सांसारिक झंझटों में फंस जाता है, तब उसकी मानसिक शांति भंग हो जाएगी, समाधि खतरे में पड़ जाएगी। और पाँचवाँ मंत्र है-जीवन-मरण की आकांक्षा से रहित होना । जब साधक अधिक जीने की या कष्ट आने पर जल्दी मरने की आकांक्षा करेगा तो उससे कर्मक्षय के बजाय कर्मबन्धन ही अधिक होगा। इसलिए वह पाँचवाँ मंत्र भी उत्तम है । इस प्रकार आदर्श तपःसमाधि के ५ मूलमंत्रों के अनुसार साधक को अपना जीवन ढालना चाहिए।
___ इस प्रकार सूत्रकृतांग सूत्र का दशम समाधि-अध्ययन अमर-सुख-बोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ।
मिक दशम अध्ययन समाप्त।
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