Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समाधि : दशम अध्ययन
का खतरा है। दीक्षा लेकर रसोई पकाने-पकवाने आदि क्रियाओं में पड़ने से स्त्रियों के साथ जो मेलजोल होता है, वह संयम के लिए खतरनाक है । अतः इन चारों बातों से जो साधक सम्पन्न हो, उसे ही समाधिप्राप्त साधक समझो।
मूल पाठ
जे केइ लोगंमि उ अकिरियआया, अन्नण पुटठा धुयमादिसति । आरंभसत्ता गढिया य लोए, धम्म ण जाणंति विमुक्खहेउ ।।१६।।
संस्कत छाया ये केऽपि लोके त्वक्रियात्मानोऽन्येन पृष्ठा: धुतमादिशन्ति । आरम्भसक्ताः गृद्धाश्च लोके, धर्म न जानन्ति विमोक्षहेतुम् ॥१६।।
___ अन्वयार्थ (लोगंमि उ जे केइ अकिरियआया) इस लोक में जो लोग आत्मा को क्रियारहित मानते हैं, (अन्नण पुट्ठा धुयमादिसंति) और दूसरे के पूछने पर मोक्ष का प्रतिपादन करते हैं, (आरंभसत्ता लोएगढिया) वे आरम्भ में आसक्त हैं और विषयभोगों में गृद्ध हैं। (विमुक्ख हे धम्म ण जाणंति) वे लोग मोक्ष के कारणरूप धर्म को नहीं जानते ।
भावार्थ __इस लोक में जो आत्मा को क्रिपारहित (अक्रिय) मानते हैं, और दूसरे के पूछने पर मोक्ष का अस्तित्व बतलाते हैं, वे लोग आरम्भ में आसक्त और विषयभोगों (दुनियादारी के झमेले) में गृद्ध हो रहे हैं। वे मोक्ष के कारणरूप धर्म को नहीं जानते।
व्याख्या
मोक्ष के सम्बन्ध में अस्पष्ट लोग दर्शनसमाधि से दूर सांख्यदर्शन आदि के प्ररूपक कुछ मतवादी लोग आत्मा को क्रियारहित मानते हैं । उनका माना हुआ आत्मा' सर्वव्यापी, अकर्ता (निष्क्रिय) निर्गुण और भोक्ता है । मूलपाठ में 'उ' (तु) शब्द प्रयुक्त है, वह आत्मा की विशेषता का सूचक है । अर्थात् आत्मा जैसे अक्रिय है, वैसे अमूर्त भी है, क्योंकि वह दिखाई नहीं देता, तथा वह छोटे-बड़े सभी पदार्थों में रहता है, इसलिए सर्वव्यापक है। इस कारण वह स्वयं अकर्ता प्रतीत होता है । सांख्य वादी की इस मान्यता के अनुसार क्रियारहित आत्मा में बन्ध और मोक्ष कथमपि घटित नहीं हो सकते । किन्तु उनसे यह सवाल पूछने पर कि अक्रिय आत्मा के बन्ध और मोक्ष कैसे होते हैं ? वे कथंचित कुटिल
१. जैसे कि कहा है ----'अकर्ता, निर्गुणो भोक्ता आत्मा कापिलदर्शने ।'
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