Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समाधि : दशम अध्ययन
एक दिन मौत आ धमकती है और वह हाथ मलता रह जाता है । ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार की समाधि कैसे प्राप्त कर सकता है ?
मूल पाठ
जहाहि वित्त पसवो य सव्वं जे बंधवा जे य पिया य मित्ता । लालप्पई सेऽवि य एइ मोहं, अन्न जणा तस्स हरंति वित्तं ॥ १६ ॥ संस्कृत छाया
जहाहि वित्तं च पशूंश्च सर्वान् ये बान्धवा ये च प्रियाश्च मित्राणि । लालप्यते सोऽपि चैति मोहम् अन्येजनास्तस्य हरन्ति वित्तम्
।।१।।
अन्वयार्थ
( वित्त ं सव्वं वसवो य जहाहि ) धन तथा समस्त पशु आदि का त्याग करो । ( जे बंधवा जे य पिया य मित्ता) तथा जो बान्धव, प्रियजन एवं मित्र हैं, वे वस्तुतः कुछ भी उपकार नहीं करते । (सेऽवि लालप्पई ) तथापि मनुष्य, पशु, प्रियजन आदि के लिए बार-बार शोकाकुल होकर प्रलाप करता है, ( एइ य मोह) और मोह को प्राप्त होता है । ( अन् जणा तस्स वित्तं हरति ) उसके मरने पर उसके द्वारा अत्यन्त क्लेश से उपार्जन किये हुए उस धन को दूसरे लोग ही हड़प जाते हैं । भावार्थ
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धन और पशु आदि समस्त पदार्थों को छोड़ो। तथा जो बांधव हैं, प्रियजन हैं और मित्र हैं, वे वस्तुतः कुछ भी उपकार नहीं करते, फिर भी मनुष्य इनके लिए विलाप करता है, मोहग्रस्त होता है । किन्तु उसके मर जाने पर उसका अत्यन्त क्लेश से कमाया हुआ सब धन दूसरे ही लोग हजम कर जाते हैं ।
व्याख्या
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ममत्व का पुतला समाधि नहीं पा सकता इस गाथा में ममता से पूर्ण मनुष्य की अधम एवं क्लेशयुक्त दशा का वर्णन किया गया है । जो लोग यह समझते हैं कि धन, पशु, बन्धु बान्धव, परिजन आदि से शान्ति, सुख और समाधि प्राप्त होती है, वे भ्रम में हैं । शास्त्रकार ने उनकी अधम दशा का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख दिया है । गुरुजनों द्वारा धन, पशु एवं स्वजनों के प्रति ममत्व त्याग का बार-बार उपदेश देने पर भी उक्त भ्रान्ति के शिकार मोहीजन इनका ममत्व नहीं छोड़ते, बल्कि जो कुछ भी उपकार नहीं कर सकते, उनके लिए वह मोह करके बार-बार झूरता है, रोता है, मोहवश उनको सुख देने के लिए धन कमाता है । किन्तु कण्डरीक के समान रूपवान, मम्मण वणिक् की तरह धनवान और तिलक सेठ की तरह धान्यवान होने पर भी ऐसे मोही पुरुष
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