Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
कर अपने मुनिधर्म पर डटा रहे । जिन कर्मों से प्राणियों को पीड़ा होती है, उन कर्मों के कारण सैकड़ों जन्मों तक उन प्राणियों के साथ व्यक्ति वैर बाँध लेता है, अथवा 'आरंभ सत्तो' यह पाठान्तर भी है, उसका अर्थ होता है, सावद्यानुष्ठानरूप आरम्भ में जो संलग्न रहता है, वह उसके लिए अनुकम्पारहित होकर द्रव्यसंचय करता है और द्रव्यसंचय के निमित्त से पापकर्मों का संचय कर लेता है, जिसका दुःखद फल उसे जन्म-जन्मान्तर तक नरक आदि में भोगना पड़ता है । इसलिए शास्त्रकार कहते हैं -- 'तम्हा उ विप्पमुक्के ।' अर्थात् विवेकी या मर्यादा में स्थित समाधिगुण का ज्ञाता मुनि ज्ञानादिरूप समाधिधर्म को जानकर बाह्याभ्यन्तर संगों को सर्वथा तिलांजलि देकर संयमनिष्ठ होकर रहे।
मल पाठ आयं ण कुज्जा इह जीवियट्ठी, असज्जमाणो य परिव्वएज्जा । णिसम्मभासी य विणीय गिद्धि, हिंसन्नियं वा ण कहं करेज्जा ।।१०।।
___ संस्कृत छाया आयं न कुर्यादिह जीविता , अस जमानश्च परिव्रजेत् । निशम्यभाषी च विनीय गृद्धिं, हिंसान्वितां वा न कथां कुर्यात् ॥१०॥
अन्वयार्थ
(इहजीवियट्ठी आयं ण कुज्जा) साधु इस लोक में चिरकाल तक जीने की इच्छा से द्रव्य-उपार्जन न करे, (असज्जमाणो य परिव्वएज्जा) तथा स्त्री-पुत्र आदि में आसक्त न रहता हुआ संयम में प्रवृत्ति करे । (णिसम्मभासी) साधु कोई भी बात सोच-विचार कर कहे । (गिद्धि विणीय) शब्दादि विषयों में आसक्ति हटाकर (हिंसनिय कहं ण करेज्जा) हिंसा से युक्त कथा न कहे।
भावार्थ साधू इस संसार में चिरंजीवी बनने की अभिलाषा से धन न कमाए तथा स्त्री-पुत्र आदि में अनासक्त रहकर संयम में जुटा रहे । शब्दादि विषयों से आसक्ति हटाकर रहे । साधु सोच-विचार कर कोई बात कहे, जिस कथा से हिंसा भड़कती हो, ऐसी कथा न कहे।
व्याख्या समाधि-अर्थी साधक के लिए कुछ शिक्षाएं
इस गाथा में समाधिअर्थी साधु के लिए कुछ शिक्षाएं बताई हैं
(१) धनोपार्जन न करे, (२) परिवार में आसक्ति न रखे, (३) विवार कर बोले, (४) शब्दादि विषयों से आसक्ति हटा दे और (५) हिंसोत्तेजक कथा न कहे । ये पाँचों शिक्षाएँ समाधि के लिए बहुत उपयोगी हैं। जो अपने पास आए, उसे आय
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