Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समाधि : दशम अध्ययन
७८५
मूल पाठ उड्ढं अहेयं तिरियं दिसासु, तसा य जे थावर जे य पाणा । हत्थेहि पाएहि य संजमित्ता, अदिन्नमन्नेसु य णो गहेज्जा ॥२॥
संस्कृत छाया ऊर्ध्वमधस्तिर्यग्दिशासु, त्रसाश्च ये स्थावरा ये च प्राणाः । हस्तैःपादेश्च संयम्य, अदत्तमन्यैश्च न गृहणीयात् ॥२॥
___ अन्वयार्थ (उड्ढे अहेयं तिरियं दिसासु) ऊँची, नीची और तिरछी दिशाओं में (तसा य थावर य जे पाणा) जो त्रस या स्थावर प्राणी रहते हैं, (हत्थेहि पाएहि य संजमित्ता) हाथों और पैरों को संयम में रख कर उन्हें पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए (अन्नेसु य अदिन्नं णो गहेज्जा) तथा दूसरों द्वारा न दी हुई चीज नहीं लेनी चाहिए।
भावार्थ ऊंची, नीची तथा तिरछी चार दिशा, चार विदिशा, ऊर्ध्व व अधो यों कुल दसों दिशाओं में त्रस एवं स्थावर जो भी प्राणी रहते हैं, अपने हाथों और पैरों को नियंत्रण में रखकर उन्हें किसी प्रकार से क्षति नहीं पहुँचानी चाहिए तथा दूसरों द्वारा न दी हुई वस्तु ग्रहण नहीं करनी चाहिए।
व्याख्या प्राणातिपात और अदत्तादान से सर्वथा विरमण से भावसमाधि इस गाथा में यह बताया गया है कि साध को प्राणातिपात (हिंसा) और अदत्तादान (चोरी) का सर्वांशत: त्याग करने से भावसमाधि प्राप्त हो सकती है। क्योंकि प्राणातिपात आदि कर्मबन्ध के कारण हैं, और जो साधक कर्मबन्ध के कारणों को अपनाता हो, उसे भावसमाधि नहीं प्राप्त हो सकती। इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं----'उड्ढंणो गहेज्जा ।' प्राणातिपात द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप से चार प्रकार का है । समस्त प्राणातिपात (जीवहिंसा) प्रज्ञापक (कहने वाले) की अपेक्षा से ऊँचे, नीचे, तिरछे तीनों लोकों (क्षेत्रों) में तथा पूर्वादि दिशाओं तथा आग्नेय आदि विदिशाओं में किये जाते हैं । यह क्षेत्र प्राणातिपात है। जो वस या स्थावर प्राणी हैं, उन्हें पीड़ा देना द्रव्य प्राणातिपात है । 'तसा य जे थावर जे य पाणा' इस वाक्य में बीच में जो दो 'य' पड़े हैं, वे स्वगत भेद को या काल और भाव प्राणातिपात को सूचित करते हैं । 'दिन में या रात में प्राणियों को दुःखित करना कालप्राणातिपात है। पूर्वोक्त प्राणियों को हाथ-पैर आदि बाँधकर या दूसरी तरह से पीड़ा देना भावप्राणातिपात है। इन प्राणातिपातों से बचने के लिए अपने हाथों और पैरों को वश में रखना चाहिए । इसी तरह श्वास, उच्छ्वास, छींक, खाँसी और अधोवायु निकलने
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