Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
मूल पाठ आघायकिच्चमाहेडं, नाईओ विसएसिणो । अन्ने हरंति तं वित्तं, कम्मी कम्मेहि किच्चती ॥४॥ माया पिया ण्हुसा भाया, भज्जा पुत्ता य ओरसा । नालं ते तव ताणाय, लुप्पंतस्स सकम्मुणा ॥५॥
संस्कृत छाया आघातकृत्यमाधातुं ज्ञातयो विषयैषिणः अन्ये हरन्ति तद्वित्तं, कर्मी कर्मिभिः कृत्यते ॥४॥ माता-पिता स्नुषा भ्राता भार्या पुत्राश्च औरसाः । नालं ते तव त्राणाय, लुप्यमानस्य स्वकर्मणा ॥५।।
अन्वयार्थ (विसएसिणो नाईओ) सांसारिक सुखाभिलाषी ज्ञातिजन (आघायकिच्चमाहेउ) मरणोत्तर क्रिया (दाहसंस्कार, जलांजलिप्रदान, पितृपिंड आदि कृत्य) करके (तं वित्त अन्ने हरंति) उस आरम्भ-पापकर्ता के धन का वे (अन्य) लोग हरण कर लेते हैं, (कम्मी कम्मेहि किच्चती) परन्तु उस द्रव्य को एकत्रित करने के लिए नाना प्रकार के पापकर्म करने वाला वह व्यक्ति अकेला उन पापकर्मों के फलस्वरूप दुःख भोगता है ॥४॥
(सकम्मणा) अपने पापकर्म से (लुप्पंतस्स) संसार में पीड़ित होते हुए (तव) तुम्हारी (ताणाय) रक्षा करने के लिए (माया पिया ण्हुसा भाया भज्जा पुत्ता य ओरसा) माता, पिता, पुत्रवधू, भाई, भार्या और सगे औरस पुत्र (नालं) कोई भी समर्थ नहीं हैं ॥५॥
भावार्थ - सांसारिक सुखाभिलाषी धनलोलुप ज्ञातिवर्ग दाहसंस्कार आदि मरणोत्तर क्रिया करके उसके अजित किये हुए धन का हरण कर लेते हैं । परन्तु पापकर्म करके धन संचय करनेवाला वह मृत व्यक्ति अकेला ही उन पापों का दुःखरूप फल भोगता है ॥४॥
अपने पापकर्म के फलस्वरूप संसार में दुःख भोगते हुए प्राणी को उसके माता-पिता, पुत्रवधू, भाई, भार्या और सगे बेटे आदि कोई भी बचा नहीं सकते।
व्याख्या स्वकृत कर्मों के दुःखद फल का स्वयं ही भोक्ता
इन दोनों गाथाओं में यह बताया गया है कि मनुष्य बड़ी-बड़ी उमंगों से
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