Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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व्याख्या
धर्म का यह उपदेश भगवान् महावीर का है।
शास्त्रकार पूर्वोक्त गाथाओं में बताए हुए धर्म के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण करते हुए कहते हैं - मैं इस धर्म का मूलवक्ता नहीं हूँ । किन्तु भगवान् महावीर ने साधुधर्म के सन्दर्भ में इन अनाचरणीय बातों का उल्लेख किया है । उन्होंने ही संसारसागर से पार करने में समर्थ श्रुतधर्म तथा चारित्रधर्म का उपदेश दिया है, यानी अनाचरणीय बातों के त्यागरूप चारित्रधर्म तथा जीवादि पदार्थों के बोधरूप श्रुतधर्म का उपदेश उन्होंने ही दिया है । क्योंकि वे स्वयं केवलज्ञानी, केवलदर्शनी होने से समस्त वस्तुतत्त्व के अनुभवी थे, और बाह्य एवं आभ्यन्तर सभी ग्रन्थियों से मुक्त वे ही गणधरों, स्थविरों, तथा समस्त श्रमणों-श्रमणियों के स्वयंसम्बुद्ध गुरु थे, इसलिए महामुनि थे । आचारशास्त्र के वे ही परमज्ञाता और अनुभवी थे । इसलिए उन आप्तपुरुष की कोई भी बात अमान्य नहीं हो सकती ।
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सूत्रकृतांग सूत्र
मूल पाठ
भासमाणो न भासेज्जा, णेव वंफेज्ज मम्मयं । मातिट्ठाणं विवज्जेज्जा, अणुचितिय वियागरे ॥२५॥ तत्थिमा सइया भासा जं वदित्ताऽणुतप्पती
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जं छन्नं तं न वत्तव्वं, एसा आणा नियंट्ठिया ॥२६॥ होलावायं सहीवायं, गोयावायं च नो वदे तुमं तुमंति अमणुन्नं सव्वसो तं ण वत्तए संस्कृत छाया
॥२७॥
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भाषमाणो न भाषेत, नैवाभिलपेन् मर्मगम् मातृस्थानं विवर्जयेद्, अनुचिन्त्य व्यागृणीयात् ||२५|| तत्रेयं तृतीया भाषा, यामुक्त्वाऽनुतप्यते यच्छन्नं तन्न वक्तव्यं, एषा आज्ञा नैर्ग्रन्थिकी ॥ २६ ॥ होलावादं सखीवादं गोत्रवादञ्च नो वदेत् त्वं त्वमित्यमनोज्ञ सर्वशस्तन्न वर्तते
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॥२७॥
अन्वयार्थ
( भासमाणो न भासेज्जा ) भाषा समिति से युक्त साधु भाषण करता हुआ भी भाषण नहीं करता है । ( मम्मयं णेव वंफेज्ज) साधु किसी के हृदय को मर्मस्पर्शी चोट पहुँचाने वाली बात न कहे, (मातिट्ठाणं विवज्जेज्जा) साधु मातृस्थान - कपट
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