Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
भी अपना पापमल धो कर झटपट मुक्ति प्राप्त क्यों नहीं कर लेते ? जलावगाहन मुक्ति देने वाला जो है, आपके मत से ! परन्तु यह कदापि देखा नहीं जाता, अभीष्ट भी नहीं है। यों अगर पापियों को केवल जल में गोता लगाने या स्नान करने से ही मुक्ति मिलने लगे तो फिर नरक आदि लोक बिलकुल खालो हो जाएंगे, वहाँ कोई भी प्राणी नहीं रहेगा। इसलिए जलस्पर्श से मुक्ति की मनगढन्त कल्पना मिथ्या है। कुछ पोंगापंथियों ने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए यह मिथ्या मान्यता चला रखी है।
इसके पश्चात् १८वीं गाथा में अग्निस्पर्श से मोक्षवादियों की मान्यता का खण्डन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं-जो पुरुष सायंकाल एवं प्रातःकाल अग्नि का स्पर्श करते हुए अग्नि में होम करने से मोक्षप्राप्ति बताते हैं, उनका कथन भी यथार्थ नहीं है। उनका कथन इस प्रकार है-श्रु तिवाक्य है कि 'अग्निहोत्र जुहुयात् स्वर्गकामः' अर्थात् स्वर्ग की कामना करने वाला अग्निहोत्र करे। अग्नि में घी, तथा अन्य हव्यसामग्री होमने से स्वर्ग की प्राप्तिरूप सिद्धि मिलती है। क्योंकि अग्नि जैसे बाह्य द्रव्यों को जला देती है, वैसे ही वह आभ्यन्तर पापकर्मों को भी जला डालती है। परन्तु वह अग्नि तभी आभ्यन्तर पापों को जलाती है, जब घृत आदि हवन सामग्री से उसे तृप्त किया जाए। अथवा हविषु के द्वारा अग्नि को तृप्त करते हुए उस कर्म से इच्छानुसार गति चाहते हैं। इसीलिए अग्निहोत्रवादी (मीमांसक या वैदिक) लोगों का कहना है कि अग्निस्पर्शादि कार्य करने से अवश्य ही सिद्धि मिल जाती है।
यद्यपि 'अग्निहोत्र जुहुयात् स्वर्गकामः' यह श्रु तिवाक्य अग्निहोत्र कर्म से स्वर्ग की प्राप्ति ही प्रतिपादित करता है; मोक्षप्राप्ति का विधान नहीं करता, क्योंकि उनके मत में मोक्ष विधेय नहीं है। वह कर्मजन्य नहीं है, तथापि मीमांसकों का यह मत है कि निष्कामभाव से किया जाने वाला अग्निहोत्र आदि कर्म मोक्ष का प्रयोजक है। इसी मत को लक्ष्य में रखकर यहाँ अग्नि-स्पर्ण से मोक्ष का प्रतिपादन किया गया है, इसलिए इस श्रु तिवाक्य से विरोध नहीं आता।
इस मन्तव्य का खण्डन करते हुए शास्त्रकार कहते हैं - 'एवं सिया सिद्धि ... कुकम्मिणं पि।' आशय यह है कि यदि अग्नि में द्रव्यों के डालने से या अग्नि-स्पर्श करने से मुक्ति मिलती हो तो आग जलाकर कोयला बनाने वाले तथा कुभार, लुहार आदि आरम्भजीवियों को भी सिद्धि मिल जानी चाहिए।
अग्निहोत्रवादी कहते हैं कि हमारी शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार संस्कृत अग्नि में ही होम करने से मुक्ति मिलती है। कुंभार, लुहार आदि आरम्भजीवी लोग संस्कृत अग्नि में आहुति नहीं डालते। इसलिए उन्हें अग्निस्पर्श से मुक्ति कैसे मिल सकती है ?
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