Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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कुशील-परिभाषा : सप्तम अध्ययन
६६७ जो जलस्पर्श से मोक्ष बताते हैं, उनका कथन युक्तिसंगत नहीं है। मोक्षतत्व के रहस्पज्ञ इसे मिथ्या मान्यता कहते हैं ।
जलस्पर्शमोक्षवादी यह कहते हैं कि जल जैसे बाह्य मैल को दूर कर देता है, वैसे ही आन्तरिक मैल को भी दूर कर देता है, परन्तु उनका यह कथन भी मिथ्या एवं युक्तिविरुद्ध है। जल जैसे बाहर के बुरे मैल को धो देता है, वैसे अंगराग, कुंकुम, चन्दनादि लेप को भी धो डालता है, इसी प्रकार जैसे वह पापकर्ममल को धो डालेगा, वैसे वह पुण्य (शुभ कर्म) को भी धो डालेगा। अर्थात् जल से पाप की तरह पुण्य के भी धुल जाने से वह अपने ही अभीष्ट का विघातक एवं विरोधी होगा, हितकारक नहीं। इससे आगे बढ़कर कहें तो जल मोक्ष के लिए किये जाने वाले अनुष्ठानों को भी एक दिन धोकर साफ कर देगा। अतः जल मोक्षप्रापक या मोक्षसाधक के बदले मोक्षबाधक ही सिद्ध हुआ। इसलिए जल कर्ममल का हरण कर देता है, यह कथन कोरी कपोल-कल्पना है, इसके पीछे कोई ठोस प्रमाण एवं युक्ति नहीं है।
जो लोग अपनी बृद्धि अज्ञानी नेता के हाथ में सौंपकर उनके पीछे-पीछे केवल अन्धानुसरण करते हैं, वे जलस्पर्श से मोक्ष होने की झूठी मान्यता को झटपट नहीं छोड़ते, बल्कि अधिकाधिक जलस्पर्श करके अनेक प्राणियों का हनन करते रहते हैं, भला प्राणिहिंसा से उन्हें मोक्ष कैसे मिलेगा ?
वारिभद्रक जलस्पर्शवादियों की दृष्टि से देखें तो भी स्मृतियों में ब्रह्मचारी के लिए जल से स्नान करना दोषकारक एवं निषिद्ध बताया है ---
स्नान मद-दर्पकरं, कामांगं प्रथमं स्मृतम् ।
तस्मात् कामं परित्यज्य न ते स्नान्ति दमेरताः ।। अर्थात्-- स्नान मद और दर्प उत्पन्न करता है। वह काम का पहला अंग है। इसलिए जो पुरुष इन्द्रियों के दमन में रत हैं, वे काम का त्याग करके जलस्नान
नहीं करते।
भारतीय आध्यात्मिक मनीषी यह भी तो मानते हैं कि केवल पानी शरीर पर उड़ेल कर उसे गीला कर लेने वाला व्यक्ति 'स्नात' (नहाया हुआ) नहीं कहलाता, स्नात तो वह तभी कहलाता है, जब वह अहिंसा आदि व्रतों से स्नात हो। वस्तुतः वही बाह्य और आभ्यन्तररूप से पवित्र है, शुद्ध है।
जलस्पर्श से मुक्ति की मिथ्या मान्यता का पूर्वोक्त युक्तियों से खण्डन किये जाने के बावजूद भी झूठी जिद करके वे अपनी मान्यता पर दृढ़ रहकर यह कहें कि जलस्पर्श पापकर्म-मल को धो डालता है, तब शास्त्रकार कहते हैं कि पापकर्म करने वाले व्यक्ति के पाप को यदि शीतलजलस्नान मिटा देता है, तब तो जलचर प्राणियों का अहर्निश घात करने वाले एवं जल में अवगाहन करने वाले पापी मछुए
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