Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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वीर्य : अष्टम अध्ययन
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का पुरुषार्थ होता है । पण्डितवीर्यशाली पुरुष मोक्ष के लिए पुरुषार्थ करके वीतरागता या मुक्ति का अनन्तसुख प्राप्त करता है, जबकि बालवीर्यशाली जीव अपने पापकर्मों के कारण बार-बार नरकादि दुःखस्थान योनियों में दु:ख पाता है। ज्यों-ज्यों वह नरकादि दुःखों का भोगता है, त्यों-त्यों खराब अध्यवसाय के कारण अशुभ विचार करता है, जो उसके लिए और अधिक दुःख का कारण होता है । इस प्रकार विचार करके पण्डितवीर्यवान् पुरुष धर्मध्यान में पुरुषार्थ करता है। अपने अध्यवसायों, वचनों और कार्यकलापों की बार-बार जाँच पड़ताल करता रहता है तथा अपनी शक्ति अच्छे कार्यों में लगाता है।
मूल पाठ ठाणी विविहठाणाणि, चइस्संति ण संसओ। अणियते अयं वासे णायएहि सहीहिं य ॥१२॥
संस्कृत छाया स्थानिनो विविधस्थानानि, त्यक्ष्यन्ति न संशयः । अनित्यो (अनियतो)ऽयं वासः, ज्ञातिभिः सुहृद्भिश्च ।।१२।।
अन्वयार्थ (ठाणी) उच्च स्थान पर बैठे हुए सभी (विविहठाणाणि चइस्संति) अपनेअपने (विविध) स्थानों को छोड़ देंगे, (ण संसओ) इसमें कोई सन्देह नहीं है। (णायएहि सुहीहि य) अपने ज्ञातिजनों और मित्रों के साथ जो (अयं वासे) यह निवास या संवास है, वह भी (अणियते) अनियत है या अनित्य है ।
भावार्थ निःसन्देह स्थानों के अधिपति सभी लोग एक न एक दिन अपनेअपने उस-उस स्थान को छोड़ देंगे, तथा अपने ज्ञातिजनों और मित्रजनों के साथ जो यह संवास है, वह भी अनियत या अनित्य है ।
व्याख्या
सभी स्थान और सम्बन्ध अनित्य जो-जो उच्च पद या स्थान पर आज अधिष्ठित हैं, उन्हें स्थानी कहते हैं, जैसे देवलोक में इन्द्र तथा उनके सामानिक तैतीस पार्षद आदि स्थानी हैं। इसी तरह मनुष्यों में चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, महामाण्डलिक नृप आदि स्थानी-उच्च पद वाले हैं । इसी प्रकार तिर्यंचों में भी समझ लेना चाहिए । इस भोगभूमि आदि में भी जो कोई स्थान उत्तम-मध्यम-निकृष्ट हैं, या जो भी मंत्री, अध्यक्ष आदि पद हैं, उन स्थानों को उनके स्वामी एक न एक दिन अवश्य छोड़ देंगे । जैसा कि कहा है
अशाश्वतानि स्थानानि, सर्वाणि दिवि चेहं च । देवासुरमनुष्याणामृद्धयश्च सुखानि च ॥
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