Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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कुशील-परिभाषा : सप्तम अध्ययन करने वाले व्यक्तियों को कुशील में परिगणित करने के लिए जीवों के मुख्य-मुख्य प्रकार बताकर उनके उपमर्दन--प्राणनाश से हिंसाकर्ता की कितनी बड़ी हानि होती है ? इसे संक्षेप में बताया है।
पुढवी - पृथ्वी को शरीर बनाकर रहने वाले जीव, अर्थात् जिनका शरीर ही पृथ्वी है। यहाँ 'य' शब्द इसके अन्तर्गत भेदों को सूचित करता है। पृथ्वीकायिकों के सूक्ष्म और बादर दो भेद होते हैं, फिर इन दोनों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये दो-रो भेद होते हैं। इस प्रकार पृथ्वीकायिक जीवों के ४ भेद होते हैं।
इसी प्रकार अप्कायिक (जलकायिक), तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों के भी चार-चार भेद समझ लेने चाहिए।
वनस्पतिकायिक जीवों के कितने भेद होते हैं ? इसे शास्त्रकार बताते हैंतृण अर्थात् घास, कुश, तिनका आदि, वृक्ष यानी आम, नीम, जामुन आदि, बीज का अर्थ है—विविध प्रकार के गेहूँ, जौ, चना, मूग, मोठ आदि जनाज तथा फलों के बीज आदि। बीच-बीच में पड़े हुए 'य' शब्द अन्य भेदों को सूचित करते हैं। अर्थात् लता, गुल्म, गुच्छ आदि भेदों को भी वनस्पतिकाय में समझ लेना चाहिए ।
तसा य पाणा--जो प्राणी त्रास (उद्वेग या भय) का अनुभव करके एक स्थान से दूसरे स्थान में जाते हैं, हल-चल करते दिखाई देते हैं, वे त्रस कहलाते हैं। त्रस जीवों में दो इन्द्रियों वाले जीवों से लेकर पांचों इन्द्रियों वाले जीवों तक का समावेश हो जाता है। द्वीन्द्रिय में वे जीव आते हैं, जिसके स्पर्शेन्द्रिय (शरीर) और रसनेन्द्रिय (जीभ) हो। जैसे लट, गिंडोला, अलसिया, शंख, कौड़ी, जोंक आदि । त्रीन्द्रिय में वे जीव गिने जाते हैं, जिनके स्पर्शन, रसन और घ्राणेन्द्रिय (नाक) हो । जैसे चींटी, मकोड़ा, जूं, लीख, चींचण, खटमल, गजाई, खजूरे, दीमक, धनेरिया आदि जीव । चतुरिन्द्रिय में वे प्राणी माने जाते हैं, जिनके स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्षुरिन्द्रिय, ये ४ इन्द्रियाँ हों। जैसे टिड्डी, पतंगा, मक्खी, मच्छर, भौंरा, बिच्छू, भृगारी आदि जीव। इसके बाद पंचेन्द्रिय जीवों में उनकी गणना होती है, जिनके स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु और श्रोत्र न्द्रिय (कान) ये पाँचों इन्द्रियाँ हों। इनके मुख्यतया ४ भेद हैं -- नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देव । तिर्यंच पंचेन्द्रिय में जलचर, खे (आकाश) चर, स्थलचर (जमीन पर चलने वाले) उरपरिसर्प (छाती के बल पर चलने वाले) भुजपरिसर्प (भुजा के बल पर चलने वाले)। इनके संजी, असंज्ञी, पर्याप्तक-अपर्याप्तक, गर्भज-संमूच्छिम आदि अनेक अवान्तर भेद होते हैं।
यहाँ शास्त्रकार ने त्रस जीवों के अण्डज, जरायुज, संस्वेदज एवं रसज ये ४ प्रकार प्रशित किये हैं। अण्डज वे कहलाते हैं जो अण्डे में से फूटकर बाहर निकलते हैं---जन्म लेते हैं, जैसे पक्षी, सर्प, मिलहरी आदि । जरायुज वे कहलाते हैं,
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