Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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नरकाधिकार : पंचम अध्ययन -- द्वितीय उद्देशक
व्याख्या
पापकर्मों को याद दिलाकर रोषपूर्वक ताड़न
इस गाथा में पुनः नारकों को दी जाने वाली यातनाओं का वर्णन किया गया है । वास्तव में तीन नरकभूमियों में परमाधार्मिक तथा दूसरे नारकी जीव तथा नीचे की चार नरकभूमियों में रहने वाले दूसरे नारकी जीव नारकी जीवों की भुजा को जड़ से काट डालते हैं तथा मुँह फाड़कर उसमें तपा हुआ लोहे का लाल-लाल बड़ा गोला डालकर मुँह जला डालते हैं । फिर एकान्त में उन नारकों को ले जाकर वे उन्हें उनके द्वारा पूर्वजन्म में किये हुए पापकर्मों की याद दिलाकर यह बता देते हैं कि वे ऐसी सजा क्यों दे रहे हैं ? जैसे कि गर्म सीसा पिलाते समय वे कहते हैं'तुम कितने खुश होकर शराब पीते थे ? अब क्यों घबराते हो ?' उनके शरीर के मांस का टुकड़ा खिलाते समय कहते हैं- 'तुम तो दूसरे का मांस खूब खाते थे, अब इसे खाने में क्यों हिचकिचाते हो ?' इस प्रकार दुःख के अनुरूप उनके कर्मों का स्मरण कराते हुए उनको पीड़ा देते हैं । कभी-कभी अकारण ही रोष करके उनकी पीठ पर कोड़े बरसाने लगते हैं । बेचारे परवश नारकी जीव कुछ भी प्रतिकार नहीं कर सकते । विवश होकर उन्हें सब कुछ सहना पड़ता है ।
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मूल पाठ
अयं व तत्त' जलियं सजोइ, तऊवमं भूमिमणुक्कमंता
ते ज्झमाणा कणं थांति, उसुवोइया तत्तजुगेसु जुत्ता ||४||
संस्कृत छाया
अय इव ज्वलितां सज्योतिस्तदुपमां भूमिमनुक्रामन्तः
1
ते दह्यमानाः करुणं स्तनन्ति इषुचोदितास्तप्तयुगेषु युक्ताः ||४||
अन्वयार्थ
( अयं व ) तप्त लोहे के गोले के समान ( सजोइ ) ज्योतिसहित ( जलियं ) जलती हुई ( तत्त' ) तप्त भूमि की ( तऊवमं ) उपमायोग्य (भूमि) भूमि पर ( अणुक्कमत्ता ) चलते हुए (ते) वे नारकी जीव ( डज्झमाणा ) जलते हुए ( कलुणं थांति) करुण ऋन्दन करते हैं, ( उसुचोइया) लोहे का नोकदार आरा भोंककर प्रेरित करने पर (तत्तजुगेसु जुत्ता) तप्त गाड़ी के जुए में जुते हुए वे नारकी जीव करुण विलाप करते हैं । भावार्थ
त हु गर्म लोहे के गोले के समान ज्योतिसहित जलती हुई नरक की तपी-सी भूमि पर चलते हुए वे नारक जीव झुलसने से करुण विलाप करते हैं । साथ ही लोहे का नोकदार आरा भोंककर बैलों को चलाने की तरह तप्त गाड़ी में जुते हुए नारकी जीवों को भी आरा भोंककर चलाने से वे बेचारे करुण क्रन्दन करते हैं ।
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