Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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८.१२.
सूत्रकृतांग सूत्र
व्याख्या नरक की जलती भूमि पर चंक्रमण, नोकदार आरे से वेध !
इस गाथा में नारकी जीवों के नरक में जाज्वल्यमान लोहे के गोले की तरह जलती हुई ज्योतिस्वरूप पृथ्वी के समान नरकभूमि पर चलने की तथा बैलगाड़ी में जुते हुए बैलों को चलाने के लिए नोकदार लोहे का आरा भोंकने की तरह जुए में जोते हुए नारकी जीवों के आरा भोंकने की प्रतिक्रिया बताई है। 'कलुणं थणंति' अर्थात् वे बेचारे करुणस्वर में रोते बिलखते हैं। उनका रुदन या उनकी पुकार वहाँ कोई नहीं सुनता । परमाधामिक तो और अधिक क्रूरता से उन्हें पीड़ा पहुँचाते हैं ।
मूल पाठ बाला बला भूमिमणुक्कमंता, पविज्जलं लोहपहं व तत्त । जंसीऽभिदुग्गंसि पवज्जमाणा, पेसेव दंडेहि पुराकरंति ॥५॥
संस्कृत छाया बाला बलाद भूमिमनुक्राम्यमाणा, प्रविरलजलां लोहपथमिव तप्तां । यस्मिन्नभिदुर्गे प्रपद्यमानाः प्रेष्यानिव दण्डैः पुरः कुर्वन्ति ॥॥
अन्वयार्थ (बाला) अज्ञानी नारकी जीव (लोहपहं व तत्त) जलते हुए लोहमय मार्ग (रेल की पटरी के समान) तपी हुई (पविज्जलं) रक्त और मवाद के कारण थोड़ा पानी होने से कीचड़ वाली (भूमि) पृथ्वी पर (बला) परमाधार्मिकों द्वारा जबरन (अणुक्कमंता) चलाये जाते हुए बुरी तरह रोते-चिल्लाते हैं। (अंसीऽभिदुग्गंसि) नारकी जीव कुम्भी अथवा शाल्मलि आदि जिस दुर्गम स्थान पर (पवज्जमाणा) परमाधार्मिकों द्वारा चलने के लिए प्रेरित किये जाते हैं, किन्तु जब वे ठीक से नहीं चलते तब (पेसेव दंडेहि पुराकरंति) कुपित होकर परमाधार्मिक डंडे आदि मारकर बैल की तरह उन्हें आगे चलाते हैं ।
भावार्थ परमाधार्मिक, अज्ञानी नारकी जीवों को जलते हुए लोहमय पथ के समान तपी हई तथा रक्त एवं मवाद के कारण थोड़ा पानी होने से कीचड़ वाली जमीन पर जबर्दस्ती चलाते हैं। जिस कठिन स्थान पर जाते हुए नारकी जीव रुक जाते हैं, उस स्थान में बैल की तरह डंडे आदि से मार-मार कर वे उन्हें आगे ले जाते हैं।
व्याख्या परमाधार्मिकों द्वारा बलात् चलने को बाध्य
परमाधार्मिक नरक के मुख्य दण्डनायक हैं। वे नारकों से मनमाना व्यवहार,
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