Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
६६२
सूत्रकृतांग सूत्र पीड़ा न हो । ऐसे निर्दोष सत्य को श्रेष्ठ कहा जाता है। (तवेसु व उत्तमं बंभचेरं) तपस्याओं में ब्रह्मचर्य उत्तम तप है, इसी प्रकार (समणे नायपुत्त लोगुत्तमे) श्रमण ज्ञातपुत्र महावीर स्वामी लोक में उत्तम हैं।
भावार्थ जिस प्रकार दानों में अभयदान उत्तम है, सत्यों में पापरहित दयामय सत्य उत्तम है, तपों में ब्रह्मचर्य तप उत्तम है, उसी प्रकार तीन लोकों में ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान् महावीर सबसे उत्तम थे ।
व्याख्या त्रिलोक में सर्वोत्तम श्रमण भगवान् महावीर
___ इस गाथा में दान, सत्य और तप इन तीनों में उत्तम पदार्थ की उपमा देकर श्रमण भगवान् महावीर को त्रिलोक में सर्वोत्तम बताया गया है।
सर्वप्रथम दानों में अभयदान को श्रेष्ठ बताया गया है। दान की परिभाषा यह है --- 'स्वपरानुग्रहार्थं दीयते इति दानम्' अपने और दूसरे के अनुग्रह के लिए जो दिया जाता है, उसे दान कहते हैं। दान अनेक प्रकार का होता है। किन्तु उन सबमें अभयदान ही श्रेष्ठ कहलाता है, यह अनुभव से भी सिद्ध है, और शास्त्र से भी । अभयदान का अर्थ है-- जीवन की रक्षा या प्राण रक्षा चाहने वाले मरते हुए या भय खाते हुए प्राणी की प्राणरक्षा करना, उसे निर्भय बनाना, एक प्रकार का जीवनदान (प्राणदान) देना है, जो शास्त्रीय परिभाषा में अभयदान कहलाता है । अभयदान अन्य दानों की अपेक्षा क्यों श्रेष्ठ है ? इसे बताने के लिए नीतिकारों का अनुभव भी देखिए ...
दीयते म्रियमाणस्य, कोटि जीवितमेव वा ।
धनकोटि न गृह्णीयात् सर्वो जीवितुमिच्छति ।। अर्थात्----मरते हुए प्राणी को एक ओर करोड़ों का धन दिया जाय, दूसरी ओर उसे जीवन दिया जाय तो वह दोनों में से धन को लेना पसन्द नहीं करेगा, वह जीवन को लेना (प्राणरक्षा) ही पसन्द करेगा । क्योंकि सभी प्राणी जीना चाहते हैं।
इस सम्बन्ध में एक लौकिक कथा भी प्रसिद्ध है । एक राजा ने एक चोर को चोरी के अपराध में मृत्युदण्ड देने की आज्ञा दी। चोर को पकड़ कर चाण्डाल लोग एक खास तरह की वध्य की पोशाक पहनाकर वधस्थान की ओर ले जा रहे थे। राजा के चार रानियाँ थीं। उन्होंने महल के झरोखे से जब उस चोर को मृत्युदण्ड के लिये ले जाते देखा तो सिपाहियों से पूछने पर ज्ञात हुआ कि चोरी के अपराध में इसे मृत्युदण्ड दिया जा रहा है। एक रानी ने राजा से कहसुनकर एक दिन के लिए उसकी मृत्यु स्थगित करके चोर के प्रति उपकार करने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org