Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र करते थे। तथा देवताओं के अधिपति इन्द्र की तरह वे साधकों के अधिपति एवं तेजस्वी थे।
मूल पाठ से वीरिएणं पडिपुन्नवीरिए, सुदंसणे वा णगसव्वसेठे । सुरालए वासिमुदागरे से, विरायए णेगगुणोववेए ॥६॥
संस्कृत छाया स वीर्येण प्रतिपूर्णवीर्यः सुदर्शन इव नगसर्वश्रेष्ठः । सुरालयो वासिमुदाकरः विराजतेऽनेकगुणोपपेतः ॥६॥
अन्वयार्थ (से) वे भगवान महावीर स्वामी (वीरिएणं) वीर्य से (पडिपुण्णवीरिए) पूर्ण वीर्य-सम्पन्न हैं (सुदंसणेव नगसव्वसेठे) तथा समस्त पर्वतों में सुदर्शन-सुमेरुपर्वत के समान सर्वश्रेष्ठ हैं। (वासिमुदागरे सुरालए) निवास करने वालों को हर्ष उत्पन्न करने वाले स्वर्ग के समान, (से) वे वीरप्रभु (णेगगुणोववेए विरायए) अनेक गुणों से युक्त होकर सुशोभित हैं।
भावार्थ वीर्यान्तराय कर्म का क्षय करने से वे भगवान् महावीर परिपूर्ण वीर्य (शक्ति) से सम्पन्न थे। जिस प्रकार सुदर्शन (सुमेरु) पर्वत संसार के सब पर्वतों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार भगवान् भी सर्वश्रेष्ठ हैं। जिस प्रकार स्वर्ग निवास करने वालों में मोद उत्पन्न करने वाला है, वैसे ही आप हर्षोत्पादक तथा अनेकानेक मनोहर गुणों से युक्त होकर सुशोभित थे।
व्याख्या पूर्ण शक्तिमान्, सर्वश्रेष्ठ, प्राणिमात्र के मोदकारी वीरप्रभु
इस गाथा में पुनः दूसरे पहलुओं से कई उपमाओं द्वारा वीरप्रभु की विशेषताएँ बताई गई हैं। वे अनन्त शक्तिमान थे, क्योंकि वीर्यान्तराय कर्म के क्षय हो जाने से औरस बल, धृतिबल और संहनन बल आदि सब बलों से भगवान् परिपूर्ण थे। तथा जम्बूद्वीप की नाभि के समान सुमेरु पर्वत जिसका दूसरा नाम सुदर्शन पर्वत भी है, जैसे समस्त पर्वतों में श्रेष्ठ है, वैसे ही भगवान् वीर्य तथा अन्य गुणों में सर्वश्रेष्ठ थे। जैसे अपने पर निवास करने वाले देवताओं को आनन्द देने वाला स्वर्ग प्रशस्त वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और प्रभाव आदि गुणों से सुशोभित है, इसी तरह भगवान् भी सत्य, शील, दया, क्षमा आदि अनन्त गुणों से सुशोभित थे।
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