Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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वीरस्तुति : छठा अध्ययन
६४३ और अपुण्यवान्, सभी पर कृपा करके धर्म का कथन किया है, पूजासत्कार के लिए नहीं । अथवा धर्म ही द्वीप की तरह है, क्योंकि वह संसार समुद्र में समान भाव से आश्रय देने वाला है । अथवा धर्म दीप के समान है, क्योंकि यह अज्ञानान्धकार में भटकते हुए प्राणियों को दीपक के समान प्रकाश देता है ।
मूल पाठ से सव्वदंसी अभिभूयनाणी, णिरामगंधे धिइमं ठियप्पा । अणुत्तरे सव्वजगंसि विज्ज, गंथा अतीते अभए अणाऊ ।।५।।
___ संस्कृत छाया स सर्वदर्शी अभिभूयज्ञानी निरामगंधो धृतिमांस्थितात्मा। अनुत्तरः सर्वजगत्सु विद्वान, ग्रन्थादतीतोऽभयोऽनायुः ॥५॥
अन्वयार्थ (से) वे भगवान महावीर स्वामी (सव्वदंसी) समस्त पदार्थों को देखने वाले (अभिभूयनाणी) केवलज्ञानी, (णिरामगंधे) मूल और उत्तर गुणों से विशुद्ध चारित्र के पालक (घिइम) धृतियुक्त, (ठियप्पा) आत्मस्वरूप में स्थित थे। (सव्वजगंसि) सारे जगत् में वे (अणुत्तरे विज्ज) सर्वोत्तम विद्वान् थे। (गंथा अतीते अभए अणाऊ) वे बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार की ग्रन्थियों से रहित, निर्भय और आयुरहित थे।
भावार्थ भगवान् महावीर त्रिकालवर्ती सब पदार्थों के ज्ञाता और द्रष्टा थे । वे कामकोधादि अन्तरंग शत्रओं को जीतकर केवलज्ञानी बने थे। वे निर्दोष चारित्रपालक थे, अटल धीर पुरुष थे, अपने आत्मस्वरूप में स्थिरभाव से लीन थे। अर्थात् स्थितप्रज्ञ एवं निर्विकार शुद्धात्मा थे। समग्र लोक में अध्यात्मविद्या के सर्वोत्तम पारंगत विद्वान थे। सर्वथा परिग्रह के त्यागी थे, निर्भय थे, सदा के लिए जन्म-मृत्यु पर विजय पाने के कारण अजर-अमर अनायु हो गए थे। उन्होंने पुनर्जन्म के लिए फिर से आयुष्य का बन्ध नहीं किया था।
- व्याख्या
निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र की विशेषताएँ इस गाथा में भगवान् महावीर की विशेषताओं का निरूपण विभिन्न पदों द्वारा किया गया है--सर्वदर्शी, अभिभूयज्ञानी, निरामगन्ध, धृतिमान्, स्थितात्मा, सर्वजगत्सु अनुत्तरो विद्वान्, ग्रन्थातीत, अभय और अनायु । वे सर्वदर्शी इसलिए थे कि स्वभाव से ही चराचर जगत् के सामान्यरूप से द्रष्टा थे। मति आदि चार ज्ञानों
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