Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
बहाने से अपने मोहजाल में फंसा कर कामभोगों में लुभाना चाहे तो साधु उसमें लुभा न जाए, सावधान रहे । उसी सन्दर्भ में इस गाथा में तया यहाँ आगे की गाथाओं में बताई जाने वाली बातों के सम्बन्ध में संकेत किया गया है कि साधु सदैव कामभोगों से दूर रहे। क्यों दूर रहे ? कैसे दूर रहे ? दूर नहीं रहता है तो क्या हानि उठानी पड़ती है ? भोगों से दूर न रहने वाला साधु किस प्रकार कामभोगों में फँस कर दु:ख पाता है ? ये सब बातें हम अगली गाथाओं में कहेंगे।
कामभोगों से दूर रहने का कारण श्रमण का एक 'ओए' (ओज) विशेषण देकर बताया गया है। वृत्तिकार ओज शब्द के दो अर्थ करते हैं। एक द्रव्य-ओज और दूसरा भाव-ओज । द्रव्य-ओज का अर्थ परमाणु है और भाव-ओज का मतलब है-- राग-द्वेष से रहित पुरुष। जैसे परमाणु अकेला होता है, वैसे ही साधु भी रागद्वषादि विकारों के परिवार से रहित (भावतः) एकाकी है। जब साधु वीतरागता के पथ पर तीव्रगति से चलने वाला पथिक है तो उसे स्त्रीविषयक राग तो सर्वथा और सर्वदा छोड़ना अनिवार्य है। इसी बात को शास्त्रकार कहते हैं-'ओए सया ण रज्जेज्जा' अर्थात् रागद्वेषरहित होकर साधु सर्वथा अनर्थ की खान स्त्रियों में अनुरक्त न हों।
कदाचित् मोहकर्म के उदय से साधु में भोग की कामना प्रादुर्भुत हो जाय तो वह कैसे दूर रहे ? इसके लिए गाथा के दूसरे चरण में बताया है-'भोगकामी पुणो विरज्जेज्जा ।' आशय यह है कि ऐसी परिस्थिति में साधु ज्ञानरूपी अंकुश द्वारा कामभोगों से विरक्ति प्राप्त करे। यानी वह इस प्रकार का चिन्तन करे कि त्याग करने योग्य और ग्रहण करने योग्य पदार्थों में से कौन-से पदार्थ हैं ? त्याज्य हैं तो क्यों ? कामभोग त्याज्य इसलिए हैं कि ये गृहस्थों के लिए भी अनर्थकारक हैं, विडम्बनाप्राय हैं। तो फिर साधुओं के लिए तो कहना ही क्या ? कामभोग किम्पाकफल के समान भयंकर हानिकारक है। किम्पाकफल तो बाह्य जीवन का नाश कर देता है, लेकिन यह भोग जन्म-जन्मान्तर में जीवन को नष्ट करते हैं। अन्य विचारकों ने भी कहा है
कृशः काणः खञ्जः श्रवणरहितः पुच्छविकलः, क्षुधाक्षामो जीर्णः पिठरक-कपालादितगलः । व्रणैः पूयक्लिन्न: कृमिकुलशतैराविलतनुः,
शुनी मन्वेति श्वा हतमपि च हन्त्येव मदनः ॥ अर्थात्-दुर्बल, काना, लंगड़ा, कान और पूंछ से रहित, भूख से व्याकूल, शिथिल अंगों वाला, गले में पड़े हुए ठीकरे के कारण पीड़ित, मवाद से भरे हुए घावों, सैकड़ों कीड़ों से भरा हुआ शरीर वाला कुत्ता कुतिया के पीछे-पीछे भागता फिरता है। सच है, कामदेव मरे हुए को भी मारता है।
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