Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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स्त्रीपरिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन --द्वितीय उद्देशक
५५३ कोमल, नम्र, मनोहर, ललित वचनों से दुलारकर आश्वस्त-विश्वस्त करके वचन में अच्छी तरह बाँध लेती हैं, और जब वे यह भलीभाँति जान लेती हैं कि अब यह साधु मेरे प्रति पक्का अनुरागी हो गया है, मेरे साथ धुलमिल गया है, अब यह कहीं अन्यत्र नहीं जाएगा, तब वह उस साधु के साथ नौकर का-सा व्यवहार करने लगती हैं । वह कहती हैं -बाजार में तुम्बा काटने का चाक या छुरी (अलावुच्छेदक) देखो तो खरीदकर ले आओ, ताकि मैं उसे ठीक काटकर पात्र का मुख बना सकू, और देखो, लगे हाथों नारियल, केले, अंगूर आदि अच्छे-अच्छे फल भी लेते आना ।
___ अथवा 'वग्गुफलाई आहाराहित्ति' इसका दूसरा अर्थ यह भी होता है कि तुम जो धर्मकथा या दर्शनशास्त्र आदि पर व्याख्यान देते हो, उस वाणी (वल्गु) का फल, जो वस्त्र या नकद रूप में आदि का लाभ है, उसे भी ले आना।
मूल पाठ दारूणि सागपागाए, पज्जोओ वा भविस्सति राओ । पाताणि य मे रयावेहि, एहि ता मे पिट्ठओ मद्दे ॥५॥
संस्कृत छाया दारूणि शाकपाकाय, प्रद्योतो वा भविष्यति रात्रौ । पात्राणि (पादौ) च मे रंजय, एहि तावन्मे पृष्ठं मर्दय ।।५।।
अन्वयार्थ (सागपागाए') सागभाजी पकाने के लिए (दारूणि) ईंधन-लकड़ियाँ ले आओ। (राओ) रात्रि के निविड़ अन्धकार में (पज्जोओ) तेल आदि होगा तो प्रकाश भविस्सति) होगा । (मे पाताणि य रयावेहि) और जरा मेरे पात्रों (बर्तनों) को रंग दो, या मेरे पैरों को महावर आदि से रंग दो। (एहि ता मे पिट्ठओ मद्दे) 'इधर आओ, जरा मेरी पीठ मल दो।'
भावार्थ स्त्री उस साध को नौकर की तरह आज्ञा देती है.-"देखो, साग-भाजी पकाने के लिए लकड़ियाँ नहीं हैं, लकड़ियाँ ले आओ। रात में प्रकाश के लिए तेल भी नहीं रहा, अतः तेल लाओगे तो प्रकाश होगा। और जरा मेरे पैरों को महावर आदि से रंग दो या मेरे पात्रों (बर्तनों) को रंग से रंग दो, और जरा इधर आओ, मेरी पीठ में दर्द हो रहा है, उसे मल दो।" ।
व्याख्या
स्त्री नौकर की तरह तुच्छ कार्यों में जुटाए रखती है स्त्री के गुलाम बने हुए साधु को वह स्त्री नौकर की तरह तुच्छ कार्यों में
१. कहीं-कहीं 'अन्नपागाए' (अन्नपाकाय) पाठ भी मिलता है।
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