Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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स्त्रीपरिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन - द्वितीय उद्देशक
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दिव्य ( वैयिक) कामभोग के भी नौ भेद हैं । इन अठारह प्रकार की परक्रिया ( अब्रह्मचर्य ) का साधु त्याग करे, और १८ प्रकार से ब्रह्मचर्यव्रत को सुरक्षित रखे । मूल पाठ इच्चेवमाह से वीरे, धुअरए अमोहे से भिक्खू तम्हा अज्झत्तविद्धे सुविमुक्के आमोक्खाए परिव्वज्जासि ॥ २२ ॥ ॥त्ति बेमि ॥
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संस्कृत छाया
इत्येवमाहुः स वीरः धुतरजाः धुतमोहः स भिक्षुः । तस्मादध्यात्मविशुद्धः सविमुक्तः आमोक्षाय परिव्रजेत् ||२२||
॥ इति ब्रवीमि ||
अन्वयार्थ
( धुअरए धुअमोहे) जिसने स्त्रीसम्पर्कजनित रज यानी कर्मों को दूर कर दिया था तथा जो रागद्वेषमोहरहित थे, (से वीरे इच्चेवमाहु) उन वीर प्रभु ने यह कहा है | ( हा अज्झतविसुद्ध ) इसलिए विशुद्धात्मा या निर्मलचित्त (सुविमुक्के) और स्त्रीसम्पर्क से वर्जित ( से भिक्खू ) वह साधु (आमोक्खाए) मोक्षपर्यन्त ( परिव्वज्जाए ) संयम के अनुष्ठान में प्रवृत्त रहे। (त्ति बेमि) ऐसा मैं कहता हूँ । भावार्थ
जिसने स्त्रीसम्पर्कजनित कर्मरज दूर कर दिया था, तथा जो रागद्वेषरहित थे, उन वीर प्रभु ने पूर्वोक्त बातें कही हैं, इसलिए विशुद्धात्मा या विशुद्धचित्त एवं स्त्रीसम्पर्क से अच्छी तरह विमुक्त साधु मोक्षप्राप्तिपर्यन्त संयमानुष्ठान में उद्यत रहे ।
व्याख्या
अन्तिम उपदेश
इस गाथा में अध्ययन का उपसंहार करते हुए यह सूचित किया है कि इस अध्ययन में जो भी स्त्रीपरिज्ञा सम्बन्धी बातें कही गयी हैं, वे सब परहित तत्पर, दिव्यज्ञानी, स्त्रीसम्पर्कजनित कर्मरज से मुक्त, रागद्वेष - मोहविजेता भगवान् महावीर स्वामी ने फरमाया है अतः प्रत्येक संयमी साधु को, जो विशुद्धचेता है, स्त्रीसम्पर्क से मुक्त है, वह समस्त कर्मों के क्षय (मोक्ष) होने तक संयमपालन में उद्यम करे । इति शब्द समाप्ति के अर्थ में है । बेमि ( ब्रवीमि ) का अर्थ पूर्ववत् है ।
इस प्रकार सूत्रकृतांगसूत्र के चतुर्थ अध्ययन का द्वितीय उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्यासहित समाप्त हुआ ।
॥ स्त्रीपरिज्ञा नामक चतुर्थ अध्ययन समाप्त ॥
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