Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन-द्वितीय उद्देशक
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तुतलाती बोली में बोलते हैं, अभी तो वे दुधमुहे बच्चे हैं। हे तात ! तुम्हारी गृहिणी भी अभी नवयुवती है । वह तुम्हारे द्वारा छोड़ी हुई कहीं दूसरे पुरुष के पास चली गयी तो वह उन्मार्गगामिनी, स्वच्छन्दाचारिणी हो जाएगी, यह महान् लोकापवाद होगा । इन सब बातों पर विचार करके, अपने स्त्री-पुत्रों की ओर देख कर तुम घर चलो तो अच्छा रहेगा।
मूल पाठ एहि ताय ! घरं जामो, मा य कम्मे सहा वयं । वितियपि ताय ! पासामो, जामु ताव सयं गिहं ।।६।।
संस्कृत छाया एहि तात ! गृहं यामो, मा त्वं कर्मसहा वयम् । द्वितीयमपि तात ! पश्यामो, यामस्तावत् स्वकं गृहम् ॥६॥
अन्वयार्थ (ताय) हे तात ! (एहि) आओ, (घरं जामो) घर चलें। (मा य) अब से तुम कोई काम मत करना (कम्मे सहा वयं) हम लोग तुम्हारा सब काम करेंगे । (ताय) हे तात ! (वितियंपि) अब दूसरी वार (पासामो) तुम्हारा काम हम देखेंगे । (ताव सयं गिह जामु) अत: चलो, हम लोग अपने घर चलें ।
भावार्थ हे तात ! आओ, घर को चलें। अब से तुम कोई भी काम मत करना। हम लोग तुम्हारा सब काम कर दिया करेंगे। इसलिए झटपट चलो, हम लोग अपने घर चलें।
व्याख्या
कामचोर साधक को घर चलने का आमंत्रण पारिवारिक जन अब एक और पासा फेंकते हैं। वे साधक की किसी कमजोरी को लक्ष्य करके कहते हैं- "तात ! हम जानते हैं, तुम घर के काम-धन्धों से कतराते हो । घर के कामों से घबराकर ही तुमने घर छोड़ा है । तो कोई बात नहीं, चलो, अपने घर चलें। तुम अब से कोई काम मत करना। अगर कोई काम होगा तो तुम्हारे बदले हम सब काम करेंगे। एक बार घर चलकर देखो तो सही कि किस प्रकार हम तुम्हारी सहायता करते हैं। अतः हमारा कहना मानकर घर चलो, उठो, अब हम लोग अपने घर चलें।"
मूल पाठ गंतु ताय ! पुणो गच्छे, ण तेणासमणो सिया। अकामगं परिक्कम्म, को ते वारेउमरिहति ।।७।।
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