Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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स्त्रीपरिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन-प्रथम उद्देशक
५२७ ने क्रोधित होकर उसे पीटा और अन्य पुरुष में आसक्त जानकर घर से बाहर निकाल दिया।
निष्कर्ष यह कि स्त्री के साथ एकान्त स्थान में बैठने आदि से स्त्री पर भी लांछन आता है और साधु पर भी लांछन आता है। इसलिए स्त्रीसंसर्ग से साधु सदा
मूल पाठ कुव्वंति संथवं ताहि, पन्भट्ठा समाहिजोगेहि । तम्हा समणा ण समेंति आयहियाए सण्णिसेज्जाओ ॥ ६॥
संस्कृत छाया कर्वन्ति संस्तवं ताभिः प्रभ्रष्टा समाधियोगेभ्यः । तस्मात् श्रमणाः न संयन्ति आत्महिताय सन्निषद्याः ।।१६।।
अन्वयार्थ (समाहिजोगेहि) समाधियोग-धर्मध्यान से (पभट्ठा) भ्रष्ट पुरुष ही (ताहि संथवं कुव्वंति) उन स्त्रियों के साथ संसर्ग करते हैं। (तम्हा) इसलिए (समणा) श्रमण (आयहियाए) आत्मकल्याण के लिए (सण्णिसेज्जाओ) स्त्रियों के स्थान पर (न समेंति) नहीं जाते हैं।
भावार्थ समाधियोग-धर्मध्यान से भ्रष्ट पुरुष ही स्त्रियों से परिचय करते हैं। परन्तु श्रमण आत्मकल्याण की दृष्टि से स्त्रियों के स्थान पर नहीं जाते।
व्याख्या
_ स्त्रीपरिचयी श्रमण समाधियोग से भ्रष्ट हैं आशय यह है कि जो साधु संयममार्ग से भ्रष्ट होकर स्त्रियों के साथ संस्तव करते हैं, वे प्रभ्रष्ट हैं। स्त्रियों के घर पर बार-बार जाना, उनके साथ पुरुषों की साक्षी के बिना बैठना, संलाप करना, उनको रागभाव से देखना, इत्यादि संस्तवपरिचय वेदमोहनीय कर्मोदय के कारण साधु करते हैं। जो श्रमण स्त्रियों के साथ परिचय (संस्तव) करते हैं, वे समाधियोग यानी जिसमें धर्मध्यान प्रधान है, ऐसे मनवचन-काया के व्यापारों से भ्रष्ट हैं, शिथिल विहारी हैं। स्त्रियों के साथ अत्यधिक परिचय करने से समाधियोग का नाश होता है। इसलिए उत्तम साधक स्त्रियों की माया को पास नहीं फटकने नहीं देते।
सण्णिसेज्जाए–संनिषद्या उसे कहते हैं, जो सुख का उत्पादक होने से तथा अनुकूल होने के कारण निषद्या अर्थात् निवास स्थान के समान है। स्त्रियों के
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