Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
एकान्त में बैठे या वार्तालाप करते देखकर होने वाली जन-प्रतिक्रिया का अनुभवसिद्ध वर्णन है—'समणं पि द?""संकिणो होति ।' एक लोकश्रुति है---'यद्यपि शुद्ध लोकविरुद्ध न करणीयं, नाचरणीयम् ।' इसका अर्थ है- यद्यपि किसी व्यक्ति का व्यवहार शुद्ध और निर्दोष है, किन्तु लोक-व्यवहार की दृष्टि से विरुद्ध हो तो उसे नहीं करना चाहिए और उस प्रकार आचरण भी नहीं करना चाहिए। यही बात दूसरी दृष्टि से शास्त्रकार कहते हैं कि यद्यपि साधु पवित्र है, तपश्चर्या से उसका तनमन परिपूत हो चुका है, वह राग-द्वेष से वर्जित है, इसलिए सांसारिक प्रपंचों से उदासीन या मध्यस्थ रहता है, तपस्या से शरीर खिन्न एवं रूखा-सूखा, जीर्ण हो रहा है तथा जो विषयसुख का विरोधी है, इतने पवित्र निर्दोष श्रमण को भी यदि किसी स्त्री के साथ लोग एकान्त में बैठे या वार्तालाप करते देखते हैं तो एकदम आगबबूला हो जाते हैं, उसकी खरीखोटी आलोचना करने लगते हैं, उसकी ओर अँगुली उठाने लगते हैं, उसे भला-बुरा कहते हैं । तात्पर्य यह है कि ऐसे तपोमूर्ति तटस्थ साधु को भी एकान्त में स्त्री के साथ वार्तालाप करते देख कर कई लोग सहन नहीं करते और एकदम क्रोधित हो जाते हैं, तो फिर जिस साधु में स्त्रीसंसर्ग से विकार उत्पन्न हो गया है, उसकी तो बात ही क्या है ? अथवा यहाँ 'समणं दठ्ठदासीणं' का यह अर्थ भी हो सकता है --- 'जो साधु अपना स्वाध्याय, ध्यान, संयमक्रिया आदि प्रवृत्तियों के प्रति उदासीन (लापरवाह) होकर जब देखो तब किसी स्त्री के साथ एकान्त में बातचीत करता रहता है, उसे देखकर भी कई लोगों में रोष पैदा हो जाता है।
___ अथवा स्त्री के साथ एकान्त में वार्तालाप करते हुए साधु को देखकर लोग उस स्त्री के प्रति चरित्रहीन या बदचलन होने की शंका करते हैं। वे स्त्री सम्बन्धी दोष ये हैं-वे समझते हैं कि यह स्त्री भाँति-भाँति के पकवान बनाकर इस साधु को देती है। इसलिए यह साधु प्रतिदिन यहाँ आया करता है। अथवा यह स्त्री ससुर आदि को आधा आहार परोसकर साधु के आने पर चंचलचित्त होती हुई श्वसुर आदि को एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु परोस देती है। इसलिए वे उस स्त्री के प्रति एकदम शंकाशील हो जाते हैं कि यह स्त्री अवश्य ही उस साधु का संग करती है। इसी कारण साधु को विशिष्ट आहार देती है और उसके साथ अन्य पुरुषों से रहित एकान्त स्थान में बैठती है। यह अवश्य ही चरित्रभ्रष्ट हो गयी है, नहीं तो परपुरुष के प्रति इतना प्रेम क्यों दिखलाती ?
इस सम्बन्ध में एक उदाहरण भी है। एक स्त्री भोजन की थाली पर बैठे हुए अपने पति व श्वसुर को भोजन परोस रही। परन्तु उसका चित्त उस समय गाँव में होने वाले नट के नृत्य को देखने में था। अतः अन्यमनस्क होने के कारण चावल के बदले रायता परोस दिया। उसका ससुर इस बात को ताड़ गया। पति
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