Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र निवासस्थान को भी सन्निषद्या कहते हैं । आत्मकल्याण चाहने वाले साधु जहाँ ऐसी सन्निषद्या हो, वहाँ नहीं जाते ।
यहाँ जो स्त्री-संसर्ग छोड़ने का उपदेश दिया गया है, वह स्त्रियों को भी इहलोक परलोक में होने वाली हानि से बचाने के कारण हितकर है। इस गाथा के उत्तर्रार्द्ध में कहीं-कहीं ऐसा पाठ भी पाया जाता हैं—'तम्हा समणा उ जहाहि अहिताओ सन्निसेज्जाओ।' इसका भावार्थ यह है कि स्त्री सम्पर्क अहितकर है, इसलिए हे श्रमणो ! विशेष रूप से स्त्रियों के निवास स्थानों की तथा स्त्रियों द्वारा की गई सेवाभक्ति रूप माया को स्वकल्याण के निमित्त छोड़ दो। यही इस गाथा का तात्पर्य है।
मूल पाठ बहवे गिहाई अवहटु मिस्सीभावं पत्थुया य एगे। धुवमग्गमेव पवयंति, वाया वीरियं कुसीलाणं ॥१७॥
संस्कृत छाया बहवो गृहाणि अवहृत्य मिश्रीभावं प्रस्तुताश्च एके। ध्रुवमार्गमेव प्रवदन्ति वाचा वीर्यं कुशीलानाम् ॥१७॥
__ अन्वयार्थ (बहवे एगे) बहुत-से लोग (गिहाई अवहट्ट) घर से निकलकर अर्थात् प्रवजित होकर भी (मिस्सीभावं पत्थुया) मिश्रमार्ग अर्थात् कुछ गृहस्थ और कुछ साधु का आचार स्वीकार कर लेते हैं । (धुवमग्गमेव पवयंति) इसे वे मोक्ष का ही मार्ग कहते हैं, किन्तु (वाया वीरियं कुसीलाणं) यह कुशील लोगों की वाणी की शूरवीरता है, अनुष्ठान में नहीं।
भावार्थ बहुत-से लोग प्रव्रज्या लेकर (गृहवास छोड़कर) भी कुछ गृहस्थ और कछ साधु के मिले-जुले आचार को सेवन करने में उद्यत होते हैं। वे अपने इस आचार को ही ध्र व-मोक्ष का मार्ग कहते हैं । किन्तु यह उन कुशीलों की केवल वाणी की ही शूरवीरता है, आचरण की नहीं।
व्याख्या मिश्रमार्गी प्रवजितों का बकवास
इस गाथा में शास्त्रकार ऐसे साधकों का परिचय दे रहे हैं, जो साध और गृहस्थ के मिलेजुले आचार का पालन करते हैं और उसी को मोक्षपथ के नाम से प्ररूपण करते हैं, उसी की विशेषता बताते हैं, उसी के समर्थन में तर्क और प्रमाण प्रस्तुत करते हैं, उसी को सिद्ध करने के लिए एड़ी से चोटी तक पसीना बहाते हैं ।
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