Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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भावार्थ
हे पुत्र ! अपने माता-पिता का भरण-पोषण करो। माता-पिता के भरण-पोषण से ही तुम्हारा यह लोक और परलोक सुधरेगा -- बनेगा । यही लौकिक आचार है । इसीलिए ये (पुत्र) अपनी माता का पालन करते हैं ।
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व्याख्या लौकिक राग में फँसाने का स्वजनों का तरीका
मोही पारिवारिकजनों द्वारा साधक को मोह में फँसाने का एक और तरीका और है वह यह है कि वृद्धजन उससे कहते हैं - "बेटा ! माँ-बाप का भरण-पोषण करो। इसी से ही यह लोक और आगामी लोक बनेगा - सुधरेगा । और यह भी तो लोक में प्रसिद्ध मार्ग है कि जो पुत्र होते हैं, वे अपनी जन्मदात्री माँ का तो पालन करते ही हैं, उसके साथ-साथ सभी गुरुजनों का भी पालन करते हैं । माता-पिता के उपकारों से वे तभी उऋण हो सकते हैं । लौकिक आचारशास्त्र में यह बात स्पष्ट कही है ।
सूत्रकृतांग सूत्र
मूल पाठ
उत्तरा महुरुल्लावा, पुत्ता ते तात ! खुड्ड्या | भारिया ते णवा तात ! मा सा अन्नं जणं गमे ||५|| संस्कृत छाया
उत्तराः मधुरालापाः पुत्रास्ते तात ! क्षुद्रकाः । भार्या ते नवा तात ! मा साऽन्यं जनं गच्छेत् ||५|| अन्वयार्थ
( तात) हे तात ! ( ते उत्तरा पुत्ता) तुम्हारे उत्तरोत्तर - एक के बाद एक जन्मे हुए पुत्र (महुरुल्लावा) अभी तुतलाती हुई मीठी बोली में बोलते हैं, (खुड्या)
अभी बहुत छोटे हैं । ( तात) हे तात ! ( ते भारिया णवा) तुम्हारी पत्नी अभी नवयौवना है, (सा) वह (अन्नं जणं) दूसरे पुरुष के पास ( मा गमे ) न चली जाए । भावार्थ
एक-एक करके आगे-पीछे जन्मे हुए ये तुम्हारे बच्चे अभी तो दुधमुँहे और मधुरभाषी हैं । हे तात ! तुम्हारी पत्नी भी अभी नवयुवती है, वह किसी दूसरे के पास न चली जाए ।
व्याख्या
साधक को फुसलाने का तरीका
वे कहते हैं - "पुत्र ! तुम्हारे बहुत सुन्दर सलोने (उत्तम) और मधुरभाषी (पुत्र) बच्चे हैं अथवा एक के बाद एक उत्तरोत्तर पैदा हुए तुम्हारे पुत्र मीठी-मीठी
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