Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
४८२
सूत्रकृतांग सूत्र चक्कर में पड़े हुए बौद्ध आदि साधकों को शास्त्रकार कहते हैं-आप लोग इस मिथ्या मान्यता के कारण जीवहिंसा में प्रवृत्त होते हैं, झूठ बोलते हैं, बिना दी हई वस्तु ग्रहण कर लेते हैं, मैथुन (कामसेवन) और परिग्रह (ममत्वपूर्वक भोग्यसाधनों के संग्रह) में रत रहते हैं। इस कारण आप असंयमी ही कहलाएँगे, संयमी नहीं।
व्याख्या
मिथ्यामान्यता के चक्कर में पंचाश्रवसेवन
पूर्वगाथा में शास्त्रकार ने शाक्यादि साधकों को पूर्वोक्त मिथ्यामान्यता छोड़ने की जोरदार प्रेरणा दी, किन्तु दुराग्रही व्यक्ति अपनी पकड़ी हुई मिथ्यामान्यता को सहसा नहीं छोड़ता। इसका नतीजा क्या होता है ? इसे बताते हुए शास्त्रकार पुनः उनके हृदय की आँखें खोलते हैं-बन्धुओ ! सुखभोग से भविष्य में भी सुख प्राप्त होता है, इस मिथ्यामान्यता के कारण वहककर आप लोग कितना नीचे उतर आये हैं ! ध्यान से सोचिए ! जब आप लोग यही झूठी जिद ठान लेते हैं कि हमें तो येन-केन-प्रकारेण सुखभोग ही करना है, तब आप हिंसा, झूठ, बेईमानी, अन्याय, अनीति, मैथुनसेवन और परिग्रहवृत्ति आदि पापों का सेवन करते रहते हैं। आप अपने शरीर को पुष्ट करने और उससे इन्द्रियसुख भोगने के लिए स्वादिष्ट भोजन के पचन-पाचन आदि में स्वच्छन्दरूप से प्रवृत्त होते हैं, इस झूठी मान्यता का प्रचार करके झूठ बोलते हैं, अथवा अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए झूठी बात भी कह देते हैं। अपने आपको प्रबजित कहकर भिक्षु के आचार-विचार के पालन में उद्यत हुए आप लोग गृहस्थों का-सा आचरण करते हैं, इसलिए आप मिथ्याभाषण भी करते हैं। अपनी सुखवृद्धि के लिए आप नानाप्रकार के सुखसाधनों को जुटाते हैं, उन्हें ममत्वपूर्वक रखते हैं, हाथी, घोड़ा, ऊँट आदि पशुओं को रखते हैं, धन भी रखते हैं या फिर रखाते हैं। इस तरह परिग्रह के दोष से भी आप बच नहीं पाते । और जब सुखप्राप्ति की धुन में ही रहते हैं तो रतियाचना करने वाली स्त्री के साथ कामसेवन भी कर लेते हों, यह भी सम्भव है। फिर आप सुख के लिए जिन जीवों के शरीर का उपभोग मांसाहार आदि या सवारी आदि के रूप में करते हैं, वे शरीर उनके स्वामियों द्वारा आपको मिले नहीं, किन्तु आप उनकी अनुमति के बिना जबरन उनका उपभोग करते हैं, यह सरासर अदत्तादान का दोष है । इस प्रकार आप सुखभोग की मान्यता के कारण बेखटके जगत्प्रसिद्ध पाँचों पापों में प्रवृत्त होते हैं । भला बताइए, कोई आपको संयमी कैसे कहेगा ? बल्कि जिस प्रकार जन्मान्ध पुरुष छिद्र वाली नौका में बैठकर समुद्र पार करना चाहता है, तो समुद्र में ही डूब जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org