Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन–चतुर्थ उद्देशक
४८५ के लिए प्रार्थना करने वाली स्त्रियों से समागम कर लिया जाय तो (तत्थ) उसमें (कओ दोसो सिया) कौन-सा दोष हो जाएगा?
(एवं) पूर्वोक्तरूप से मैथुनसेवन को निर्दोष मानने वाले (एगे उ) कई (पासत्था) पार्श्वस्थ या पाशस्थ (मिच्छदिट्ठी) मिथ्यादृष्टि हैं, (अणारिया) अनार्य हैं। (कामेहि) कामभोगों में वे (अज्झोववन्ना) अत्यन्त मूच्छित हैं। (तरुणए पूयणा इव) जैसे पूतना नामक डाकिनी बालकों पर आसक्त रहती है ।
भावार्थ स्त्रियों के वश में रहने वाले अज्ञानी जैनसिद्धान्तों से विमुख कई पार्श्वस्थ या पाशस्थ इस प्रकार (आगे कही जाने वाली बातों) की प्ररूपणा करते हैं।
वे अन्यतीर्थी कहते हैं- "जैसे फूसी या फोड़े को दबाकर उसका मवाद निकाल देने से कुछ देर बाद ही पीड़ा शान्त हो जाती है, इसी प्रकार सहवास के लिए प्रार्थना करने वाली कामिनियों के साथ समागम से थोड़ी देर के बाद कामपीड़ा शान्त हो जाती है; अत: इस कार्य में क्या दोष है ?"
___ "जैसे भेड पानी को बिना हिलाये ही पी लेती है, ऐसा करने से किसी जीव का उपघात न होने से उसको कोई दोष नहीं होता है, इसी तरह रतिप्रार्थना करने वाली युवती स्त्री के साथ समागम करने से किसी को पीड़ा न होने के कारण उसमें कोई दोष कैसे हो सकता है ?"
कामासक्त अन्यतीर्थी कहते हैं- “जैसे पिंगा नाम की मादा पक्षी बिना हिलाये जल पी लेती है, किसी जीव को उसके जल पीने से कोई दुःख नहीं होता, वैसे ही अगर कोई तरुणी कामसेवन के लिए प्रार्थना करे तो उसके साथ समागम कर लेने से किसी जीव को भी दुःख नहीं होता और अपनी भी तृप्ति हो जाती है । भला, इस कार्य में क्या दोष हो सकता है ?"
पूर्वोक्त प्रकार से मैथून-सेवन को निर्दोष मानने वाले व्यक्ति पार्श्वस्थ या पाशस्थ हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, अनार्य हैं। वे कामभोगों में ऐसे अत्यन्त आसक्त-मूच्छित हैं, जैसे पूतना नाम की डाकिनी छोटे बच्चों पर आसक्त रहती है।
व्याख्या
स्त्रीसेवन में दोष ही क्या ? : एक मिथ्यामान्यता अब शास्त्रकार हवीं गाथा से लेकर १३वीं गाथा तक एक विचित्र मान्यता का रहस्योद्घाटन करते हैं, जो उस युग में नीलवस्त्रधारी बौद्ध विशेष या नाथवादी मण्डल में रहने वाले शैवविशेष में प्रचलित थी, वह मान्यता थी-"रति-प्रार्थना करने वाली अंगना के साथ सम्पर्क करने में कोई दोष नहीं है।" शास्त्रकार ऐसे
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