Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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स्त्रीपरिज्ञा । चतुर्थ अध्ययन - प्रथम उद्देशक
सूक्ष्मेण तं परिक्रम्य छन्नपदेन स्त्रियो मन्दाः उपायमपि ताः जानन्ति यथा श्लिष्यन्ति भिक्षव एके || २ ||
अन्वयार्थ
(जे) जो पुरुष इस विचार से दीक्षा ग्रहण करता है कि मैं ( मायरं पिवरं ) माता-पिता तथा ( पुत्र संजोगं ) पूर्वसम्बन्ध को ( विप्पजहाय) छोड़कर ( आरतमेहुणो ) एवं मैथुन रहित होकर तथा (एंगे सहिए ) अकेले ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त रहता हुआ (विवित्तसु) स्त्री, पशु और नपुंसकरहित स्थानों में ( चरिस्सामि ) विचरण करूंगा ।
( तं परिवकम्म )
साधु को शील
(मंदा इथिओ) अविवेकिनी स्त्रियाँ (सुमेणं) छल से साधु के पास आकर ( छन्नपण) गूढार्थ वाले शब्द से या कपट से भ्रष्ट करने का प्रयत्न करती हैं । ( ताउ उव्वायंपि जाणंसु) स्त्रियाँ वह उपाय भी जानती हैं, ( जहा एगे भिक्खुणो लिस्संति) जिससे कोई साधु उनके साथ संग कर ले |
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भावार्थ
जो व्यक्ति इस आशय से दीक्षा अंगीकार करता है कि मैं माता-पिता तथा समस्त पूर्वसम्बन्धों का परित्याग करके एवं मैथुन से दूर रहकर ज्ञानदर्शन - चारित्र ( रत्नत्रय ) का पालन करता हुआ अकेला स्त्रीपशुनपुंसकरहित एकान्त, शान्त, पवित्र स्थानों में विचरण करूंगा ।...
अविवेकिनी स्त्रियाँ किसी छल से उस साधु के निकट आकर कपट से अथवा गूढ़ अर्थ वाले शब्दों द्वारा साधु को शील से भ्रष्ट करने का प्रयत्न करती हैं । वे यह उपाय भी जानती हैं, जिससे कोई साधु उनका संग कर ले |
व्याख्या
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दीक्षा के समय साधक का संकल्प
इस गाथा में स्त्रीपरिज्ञा के सम्बन्ध में साधक को अपनी दीक्षा के समय के
संकल्प का स्मरण कराया गया है - 'जे मायरं
विवित्तसु ।'
पूर्व अध्ययन की अन्तिम गाथा के साथ इस अध्ययन की पहली गाथा का सम्बन्ध यह है कि पूर्व अध्ययन की अन्तिम गाथा में कहा गया था-' --- 'आमोक्खाय परिव्वए" अर्थात् मोक्षप्राप्तिपर्यन्त दीक्षा का पालन करे । और मोक्ष तभी और उसी को प्राप्त हो सकता है, जब मोह का त्याग हो । इसलिए इस अध्ययन में मोह
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