Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन--तृतीय उद्देशक
४४७ सुख से जीवनयापन करने का कौन-सा साधन होगा ? अत: वह संयमपालन में असमर्थ अल्पसत्त्व साधक उक्त खतरे से बचने के लिए यह मोचता है कि "मेरे लिए गणित, ज्योतिष, वैद्यक, व्याकरण और होराशास्त्र आदि जो मैंने पढ़े हैं, उन्हीं से दुःख के समय मेरी रक्षा हो सकेगी।"
मूल पाठ को जाणइ विऊवातं, इत्थीओ उदगाउ वा । चोइज्जंता पवक्खामो, ण णो अत्थि पकप्पियं ॥४॥
संस्कृत छाया को जानाति व्यापातं, स्त्रीत उदकाद्वा । चोद्यमाना प्रवक्ष्यामो, न नोऽस्ति प्रकल्पितम् ।।४।।
अन्वयार्थ (इत्थीओ) स्त्री से (उदगाउ वा) अथवा उदक-कच्चे पानी से (विऊवातं) मेरा संयम भ्रष्ट हो जाएगा, (को जाणइ) यह कौन जानता है ? (णो) मेरे पास (पकप्पियं) पहले का उपाजित द्रव्य भो (ण अस्थि) नहीं है। इसलिए (चोइज्जंता) किसी के पूछने पर हम हस्ति शिक्षा और धनुर्वेद आदि विद्याओं को (पवक्खामो) बतायेंगे।
भावार्थ संयमपालन में अस्थिरचित्त पुरुष यह सोचता है कि स्त्रीसेवन से अथवा कच्चे पानी के स्नान से मैं संयम से भ्रष्ट हो जाऊँगा, यह कौन जानता है ? मेरे पास पहले का कमाया हुआ धन भी नहीं है, किन्तु हमने जो हस्तिविद्या अ र धनुर्वेद आदि विद्याएँ सीख रखी हैं, इनको ही बता (सिखा) कर संकट के समय जीवननिर्वाह कर सकेंगे।
মাথা
___ अल्पसत्त्व साधकों का ऊटपटांग चिन्तन संयमपालन में असमर्थ साधक यों ऊटपटांग विचार करते हैं कि प्राणियों की शक्ति अल्प होती है और कर्मों की गति भी विचित्र है। प्रमाद के अनेक स्थान हैं। ऐसी स्थिति में सर्वज्ञ के सिवाय कौन निश्चयपूर्वक कह सकता है कि मैं किस उपद्रव (उपसर्ग) से हार खाकर संयम से भ्रष्ट हो जाऊँगा ? सम्भव है; स्त्रीपरीषह से मेरा संयम नष्ट हो जाए, अथवा स्नान के लिए कच्चे (सचित्त) पानी के सेवन से मेरा पतन हो जाए ! वे अदूरदर्शी अज्ञ साधक यों भी सोचते हैं---संयम से पतित हो जाने पर मेरे पास कोई पहले का कमाया हुआ धन भी नहीं है जो काम दे सके। किसी के पूछने पर मैं हस्ति विद्या, धनुर्वेद आदि विद्याएँ (जो मेरी पहले सीखी हुई हैं)
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