Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
व्याख्या सुख से सुख की प्राप्ति की मान्यता आर्यमार्ग के विरुद्ध है
__ इस गाथा में तथागत बुद्ध के बाद बौद्ध भिक्षुओं द्वारा प्रवर्तित 'सुख से सुख की प्राप्ति होती है'---इस भ्रान्त मान्यता का पूर्वपक्ष प्रस्तुत करके निराकरण किया गया है । यह भ्रान्त मान्यता यहाँ उपसर्ग के सन्दर्भ में इसलिए प्रस्तुत की गयी है कि बहुत-से अल्पपराक्रमी एवं संयमचर्या में शिथिल साधक इस भ्रान्तमान्यतारूपी उपसर्ग के शिकार हो जाते हैं और परमशान्तिदायक ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप वीतराग प्रतिपादित आर्य-- मोक्षमार्ग को छोड़ बैठते हैं---'जे तत्थ आरियं मग्गं......."परमं च समाहिए।'
मोक्षप्राप्ति के विचार प्रसंग में बौद्ध तथा लोच आदि से पीड़ित कोई स्वयूथिक यह कहते हैं कि सुख से ही सुख प्राप्त होता है । जैसा कि वे कहते हैं
सर्वाणि सत्त्वानि सुखे रतानि, सर्वाणि दुःखाच्च समुद्विजन्ते । तत्मात् सुखार्थी सुखमेव दद्यात्, सुखप्रदाता लभते सुखानि ॥
अर्थात्-सभी प्राणी सुख में रत रहते हैं और सभी दुःख से डरते हैं। इसलिए सुख चाहने वाले पुरुष को सुख ही देना चाहिए । क्योंकि सुख देने वाला ही सुख पाता है।
'सातं सातेण' युक्ति का आधार लेकर बौद्ध मानते हैं कि 'कारण के अनुरूप ही कार्य होता है।' जिस प्रकार शालिधान के बीज से शालि का ही अंकुर उत्पन्न होता है, जौ का अंकुर नहीं, उसी प्रकार इस लोक के सुख से ही परलोक मुक्ति का सुख मिल सकता है, किन्तु लोच आदि दुःख से मुक्ति नहीं मिलती। जैसा कि बौद्धागम में भी कहा है
मणुण्णं भोयणं भोच्चा, मणुण्णं सयणासगं ।
मणुण्णंसि अगारंसि, मणुण्णं झायए मुणी ॥ अर्थात्-मुनि को मनोज्ञ भोजन करके मनोज्ञ शय्या और आसन का सेवन करके मनोज्ञ घर में सुखभोग करना चाहिए। तथा मनोज्ञ पदार्थ का ही ध्यान (चिन्तन) करना चाहिए।'
इसके अतिरिक्त बौद्ध भिक्षुओं की दिनचर्या बताते हुए भी इसी बात का समर्थन किया है, और इसी सुखयुक्त दिनचर्या से मुक्तिप्राप्ति मानी गयी है
१. ये उल्लेख शीलांकाचार्य ने किस ग्रन्थ से किये हैं, यह अज्ञात है। यदि यह
किसी बौद्ध ग्रन्थ से उद्धृत किया गया है तो और भी महत्त्वपूर्ण है, यह असम्भव भी नहीं। उत्तरकाल में बौद्धों ने भी अपना साहित्य प्राकृत भाषा में निबद्ध करना प्रारम्भ कर दिया था। 'धम्मपद' इसका प्रमाण है।
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