Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन-चतुर्थ उद्देशक
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भावार्थ कोई अज्ञानी पुरुष अपरिपक्व बुद्धि के साधु को संयम भ्रष्ट करने के लिए कहता है-अजी, विदेहदेश के शासक नमिराजा ने आहार किये बिना सिद्धि प्राप्त की थी तथा रामगुप्त ने आहार करके मुक्ति पाई थी, एवं बाहुक ने शीतल जल पीकर सिद्धि प्राप्त की थी और नारायण ऋषि ने शीतोदक पीकर मोक्ष पाया था।
__ आसिल ऋषि, देवल ऋषि, महर्षि द्वैपायन एवं पाराशर ऋषि ने शीतल जल, बीज और हरी वनस्पतियाँ सेवन करके मोक्ष प्राप्त किया था।
कोई अन्यतीर्थी सूसाधुओं को संयम से पतित करने के लिए उनसे कहता है-अजी, सुनो तो सही, पूर्वकाल में हुए ये महापुरुष जगत्प्रसिद्ध थे और जैन आगमों में भी इन्हें माना गया है। इन लोगों ने तो शीतल जल और बीज का उपभोग करके सिद्धि प्राप्त की थी।
मिथ्यादृष्टि लालबुझक्कड़ों की पूर्वोक्त भ्रान्तिजनक बातें सुनकर अपरिपक्व बुद्धि के कई मूढ़ साधक संयम-पालन में इस प्रकार दुःख का अनुभव करते हैं, जैसे बोझ से पीड़ित गधे उस भार को लेकर चलने में दुःख का अनुभव करते हैं । तथा जैसे लकड़ी के टुकड़ों को हाथ में पकड़कर सरकसरक कर चलने वाला लंगड़ा मनुष्य आग आदि का उपद्रव होने पर तेजी से भागने में असमर्थ होने से भागने वालों के पीछे-पीछे चलता है, इसी तरह संयम पालन करने में दुःख अनुभव करने वाले वे मंदपराक्रमी साधक उत्साहपूर्वक शीघ्रता से मोक्ष की ओर दौड़ लगाने में असमर्थ होने से संयम पालन करने वालों के पीछे-पीछे रेंगते हए-रोते-झींकते मंदगति से चलते हैं । अतः ऐसे लोग मोक्ष तक न पहुँचकर रास्ते में ही संसार की रंगीनियों में भटकते रहते हैं।
व्याख्या
अपरिपक्वबुद्धि साधु : भ्रान्ति-उत्पादकों के चक्कर में इस उद्देशक की प्रथम गाथा में प्राचीन तपोधनी महापुरुषों की दुहाई देकर कच्ची बुद्धि के साधकों को संयम से डिगाने की बात-उपसर्ग के सन्दर्भ में कही गयी थी। दूसरी गाथा से पाँचवीं गाथा तक भी उसी के अनुसन्धान में बताया गया है कि ये भ्रान्ति उत्पादक अन्यतीथिक या बुद्धिप्रवञ्चक लोग विभिन्न ऋषियों के नाम ले-लेकर उनकी दुहाई देकर किस-किस तरह से कच्चे सुसाधक को पथभ्रष्ट कर देते हैं ? वे कहते हैं - देखो, जो लोग कहते हैं कि कच्चे शीतल जल पीने वालों को तथा सचित्त बीज एवं हरी वनस्पति खाने वाले साधकों को मुक्ति नहीं मिल सकती, वे लोग आँखें खोलकर महाभारत आदि पुराण पढ़ें। उनमें स्पष्ट लिखा है-वैदेही नमिराज ने आहारादि का त्याग करके, रानगुप्त ने आहार सेवन करके तथा बाहुक
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