Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन-द्वितीय उद्देशक
४२५ संस्कृत छाया पिता ते स्थविरस्तात ! स्वसा ते क्षल्लिकेयम् । भ्रातरस्ते स्वकास्तात ! सोदरा: कि जहासि नः ।।३।।
अन्वयार्थ (ताय) हे पुत्र ! (ते पिया) तुम्हारे पिता (थेरओ) अत्यन्त बूढ़े हैं (इमा) और यह (ते ससा) तुम्हारी बहन (खुड्डिया) अभी छोटी है। (ताय) हे पुत्र ! (ते सगा) ये तुम्हारे अपने (सोयरा भायरो) सहोदर भाई हैं। (णे कि जहासि) फिर तू हमें क्यों छोड़ रहा है ?
भावार्थ पारिवारिकजन साधु से कहते हैं- "हे पुत्र ! तुम्हारे पिता अत्यन्त वृद्ध हैं और यह तुम्हारी बहन अभी बच्ची है, तथा ये तुम्हारे अपने सहोदर भाई हैं । फिर तू हमें क्यों छोड़ रहा है ?
__व्याख्या
स्वजनों के द्वारा मोह में फंसाने का एक और प्रकार साधु के पारिवारिकजन उससे कहते हैं- "हे तात ! हे पुत्र ! देखो तो सही, ये तुम्हारे पिता सौ वर्ष को पार कर चुके हैं, अत्यन्त बूढ़े हैं, इनको तुम्हारी सेवा की आवश्यकता है। यह देखो, तुम्हारी बहन अभी छोटी-सी बच्ची है। ये तुम्हारे अपने सहोदर भाई हैं, इनकी ओर भी देखो। हम तुमसे इतना अनुरोध करते हैं, फिर हमें छोड़कर क्यों जा रहे हो?'
मूल पाठ मायरं पियरं पोस, एवं लोगो भविस्सति । एवं खु लोइयं ताय ! जे पालंति य मायरं ॥४॥
संस्कृत छाया मातरं पितरं पोषय, एवं लोको भविष्यति । एवं खलु लौकिकं तात ! ये पालयन्ति च मातरम् ।।४।।
अन्वयार्थ (ताय) हे पुत्र ! (मायरं पियरं) अपने माता-पिता का (पोस) पालन करो। (एवं) माता-पिता के भरण-पोषण करने से ही (लोगो) इहलोक-परलोक (भविस्सति) सुधरेगा-बनेगा। (ताय) हे तात ! (एवं खु) यह निश्चय ही (लोइयं) लोकाचार है कि (जे पालति य मायरं) ये पुत्र अपनी माता का पोषण करते हैं।
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