Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
झुरता है---"हाय ! अगर मेरा कोई सम्बन्धी यहाँ मौजूद होता तो क्या मेरी ऐसी दुर्दशा होती ?"
शास्त्रकार इस सम्बन्ध में दृष्टान्त देते हैं --- 'इत्थी वा कुद्धगामिणी।' आशय यह है कि जैसे कोई स्त्री घर से रूठकर निकल भागती है, किन्तु मांस की तरह कामी लोगों के लिए लोभ का पात्र होने से वह चोर-जार आदि के द्वारा पीछा करके बलात् पकड़ ली जाती है, उस समय वह पश्चात्ताप करती हुई अपने स्वजनों को याद करती है, उसी तरह अज्ञानीजनों के द्वारा किये गए प्रहार से घबराकर संयम से भाग छूटने वाला कच्चा साधक भी अपने स्वजनों को याद करता है।
मूल पाठ एते भो कसिणा फासा फरुसा दुरहियासया । हत्थी वा सरसंवित्ता, कोवाऽवसा गया गिहं ।।१७।।
त्ति बेमि ॥ संस्कृत छाया एते भोः ! कृत्स्ना: स्पर्शाः परुषाः दुरधिसह्याः । हस्तिन इव शरसंवीताः क्लीवाः अवशाः गता गृहम् ।।१७।।
इति ब्रवीमि ॥
अन्वयार्थ (भो) हे शिष्यो । (एते) ये पूर्वोक्त (कसिणा) सब के सब (फासा) परीषहों व उपसर्गों के स्पर्श (फरसा) अवश्य ही कठोर हैं, (दुरहियासया) दुःसह हैं। किन्तु (सरसंवित्ता) बाणों से पीड़ित-घायल (हत्यी वा) हाथियों की तरह (अवसा) विवश लाचार होकर (गिहं गया) वे ही घर को चले जाते हैं, (कोवा) जो नामर्द- नपुसक हैं । (त्ति बेमि) यह मैं कहता हूँ।
भावार्थ हे शिष्यो ! पूर्वगाथाओं में कहे हुए सबके सब उपसर्गों या परीषहों के स्पर्श अवश्य ही कठोर एवं दुःसह हैं, लेकिन जैसे बाण से पीड़ित हाथी युद्ध के मैदान को छोड़कर भाग जाते हैं, वैसे ही इन स्पों से पीड़ित होकर कायर और नामर्द साधक ही संयम का मैदान छोड़कर पुनः घर को लौट जाते हैं । यह मैं कहता हूँ।
व्याख्या संयमक्षेत्र छोड़कर नामदं वापस घर को लौट जाते हैं
वास्तव में संयमक्षेत्र में साधक की कड़ी परीक्षा होती है। संयम के मैदान
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