Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन - प्रथम उद्देशक
में पूर्व गाथाओं में शुरू से लेकर आखिर तक कहे गए सभी उपसर्ग और परीषह ( दंशमशक आदि ) कठोर एवं असह्य हैं । ये सभी स्पर्शेन्द्रिय से अनुभव किये जाते हैं, इसलिए 'फासा' (स्पर्श) कहलाते हैं । ये सबके सब उपसर्ग व परीषह पीड़ाकारी हैं और प्रायः अनार्य पुरुषों या क्रूर तिर्यंचों द्वारा ये उपसर्ग उत्पन्न किये जाते हैं । ये कलेजा कँपा देने वाले पीड़ाकारी उपसर्ग अल्पपराक्रमी नपुंसक लोगों द्वारा दुःसह्य होते हैं ।
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कई तुच्छ प्रकृति के अल्पसत्त्व साधक अपने मुँह से शेखी बघारते हुए पहले तो आवेश में आकर दीक्षा ले लेते हैं, किन्तु बाद में उपसर्गों व परीषहों की मार से पीड़ित होकर वे पुनः उसी तरह संयम के मैदान को छोड़कर अपने गृहवास में प्रवृत्त हो जाते हैं, जिस तरह युद्धभूमि में बाणों के प्रहार से पीड़ित हाथी मैदान छोड़कर भाग खड़े होते हैं । वस्तुतः वे साधक अपरिपक्व और गुरुकर्मी हैं । कहींकहीं 'तिब्वसढे' पाठ है, जिसका अर्थ होता है— तीव्र उपसर्गों से पीड़ित तथा असत् अनुष्ठान करने वाले कच्चे साधक शठों ने संयम छोड़कर घर की ओर प्रस्थान कर दिया था । 'यह मैं कहता हूँ इसका निरूपण पूर्ववत् समझ लेना चाहिए । इस प्रकार तृतीय अध्ययन का प्रथम उद्देशक अमरसुखबोधिनी व्याख्या सहित सम्पूर्ण हुआ।
॥ सूत्रकृतांग सूत्र के तृतीय अध्ययन का प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
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