Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
उपसर्गपरिज्ञा : तृतीय अध्ययन- - प्रथम उद्देशक
१०६
लथपथ,
मैल से क्लिन्न, बाहर की गर्मी और लू से तप्त होने के कारण शीतल जल, चन्दन आदि शीतल पदार्थों को याद करके तड़पते रहते हैं ।
अब याञ्चापरीषह के विषय में कहते हैं—
मूल पाठ
सया दत्त सणा दुक्खा, जायणा दुप्पणोल्लिया ।
कम्मत्ता दुष्भगा चेव इच्चाहंसु पुढोजणा ॥ ६ ॥
}
संस्कृत छाया
सदा दत्तैषणा दुःखं, याचना दुष्प्रणोद्या ।
कर्मार्त्ताः दुर्भगाश्चैवेत्याहः पृथक्जनाः || ६ || अन्वयार्थ
( दत्ते सण1 ) दूसरे के द्वारा दी हुई वस्तु की ही गवेषणा करना (सया ) हमेशा साधु के लिए ( दुक्खा ) दुःखदायिनी होती है । क्योंकि ( जायणा) भिक्षा माँगने की पीड़ा ( दुप्पणोल्लिया) असह्य होती है । ( पुढोजणा ) प्राकृत---अज्ञ लोग ( इच्चाहंसु ) यह कहते हैं कि ( कम्मत्ता) ये लोग पूर्वकृत कर्मों के फल भोग से पीड़ित हैं, ( दुब्भगा चेव ) और ये लोग अभागे हैं ।
भावार्थ
साधु को सदा दूसरे के द्वारा दी गयी वस्तु की ही गवेषणा - याचना करनी पड़ती है, यह याचना का दुसह्य दु:ख सदैव जिन्दगीभर साधु को बना रहता है । उस पर भी साधारण गँवार लोग साधु को देखकर कहते हैंये लोग अपने पहले किये हुए कर्मों का फल भोग रहे हैं, तथा ये भाग्यहीन हैं, तब तो मन को असह्य वेदना होती है ।
व्याख्या
याचना का परीषह अत्यन्त दुःसह इस गाथा में भिक्षाजीवी साधु के लिए याचना का परीषह तथा साथ ही प्रतिकूल व्यंगबाणों का उपसर्ग कितना दुःसह एवं मर्मस्पर्शी होता है, यह बताया गया है -- 'सया दत्तेषणा पुढोजणा ।' साधु को दाँत साफ करने की छोटी-सी कूंची ( दतौन) भी दूसरे के द्वारा दी हुई ही ग्राह्य होती है, तब भिक्षाचर्या के लिए घर-घर घूमना और कल्पनीय वस्तु की गवेषणा करके निर्दोष आहारादि की याचना बहुत ही असह्य होती है । क्षुधा आदि की वेदना से पीड़ित भिक्षु जब किसी के द्वार पर निर्दोष आहारादि की याचना करने जाता है तो अल्पपराक्रमी तथा मिथ्याभिमानी होने के कारण उसके मुख से किसी से कुछ माँगा नहीं जाता। उस समय भिक्षु की मनःस्थिति का वर्णन विद्वानों ने इस प्रकार किया है
---
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org