Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
वैतालीय : द्वितीय अध्ययन - प्रथम उद्देशक
३१३
का प्रलोभन दें, (इ) यदि वे (बंधिउं) उसे बाँधकर ( घरं ) घर पर ( णेज्जाहि ण ) क्यों न ले जाएँ, (जइ) यदि वह साधु ( जीवियं नावकखए) वैसा असंयमी जीवन नहीं चाहता है तो, (जो लब्भंति) वे उसे अपने वश में नहीं कर सकते, (ण संठवित्तए) न उसे पुनः गृहवास या गृहस्थभाव में रख सकते हैं ।
भावार्थ
साधु के परिवार के लोग उसके पास आकर उसे विषयभोगों का तरह-तरह से प्रलोभन दें, अथवा वे उसे जबरन बाँधकर घर ले जाएँ, परन्तु वह साधु असंयमी - जीवन नहीं चाहता है तो कोई भी शक्ति उसे वश में नहीं कर सकती, और न ही उसे गृहस्थभाव या गहवास में पुनः स्थापित कर सकती है ।
व्याख्या
भय और प्रलोभन में भी अविचल साधक
संयमपालन में तत्पर साधु के स्वजन उसे मनोज्ञ प्रिय शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से परिपूर्ण काम भोगों का प्रलोभन दें। वे उससे कहें - "चलो, अब हम तुम्हें बढ़िया-बढ़िया गाने सुनाएँगे, नृत्य, गीत आदि राग-रंग से तुम्हें तृप्त कर देंगे, सुन्दर-सुन्दर रूपवती नारियाँ तुम्हारी सेवा में तत्पर रहेंगी, उत्तमोत्तम सरस स्वादिष्ट पदार्थ तुम्हें खाने को देंगे, मनचाहे सुगन्धित पदार्थों से तुम्हारे मन को तृप्त कर देंगे और सुकोमल स्पर्श से तुम्हारा हृदय प्रसन्न कर देंगे । इतना सब कुछ प्रलोभन देने पर भी यदि वह साधु घर चलने को तैयार न हो तो शायद उसके स्वजन सम्बन्धी उसे मारें-पीटें और जबर्दस्ती रस्सी से बाँधकर घर ले जाएँ । परन्तु यदि उस साधु को अपना संयमी जीवन प्रिय है, वह असंयमी जीवन को नरक के समान मानकर बिलकुल नहीं चाहता है और ऐसे अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्ग के समय भी अपने साधुत्व में दृढ़ रहता है । ऐसी दशा में घर वाले चाहे लाख कोशिश कर लें, वे उसे अपने वश में नहीं कर सकते, और न ही उसे घर में या गृहस्थभाव में रखने में समर्थ हो सकते हैं । परमानन्ददायक, चन्द्रसम निर्मल, सुधातुल्य सुस्वादु क्षीरसागर के जल के समान संयम जल को पीकर भला कौन ऐसा मूर्ख होगा, जो खारे और गंदे कामभोगरूपी वैषम्य जल को पीना चाहेगा ?
मूल पाठ
सेहंति य ममाइणो मायपिया य सुया य भारिया । पोसाहि ण पासओ, तुमं लोगं परं पि जहासि पोस णो ॥ १ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org