Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र संस्कृत छाया शिक्षयन्ति च ममत्ववन्त:, माता पिता च सुताश्व भार्या । पोषय नः दर्शकस्त्वं, लोकं परं च जहासि पोषय नः ।।१६।।
__ अन्वयार्थ (ममाइणो) 'यह साधु मेरा है, ऐसा जानकर साधु से स्नेह करने वाले उसके (मायपिया य सुया य भारिया) माता, पिता, पुत्र और पत्नी (सेहंति य) साधु को शिक्षा भी देते हैं कि (तुमं) तुम (पासओ) हमारी परिस्थिति को देख रहे हो, प्रत्यक्षदर्शी हो, अथवा तुम दूरदर्शी हो, सूक्ष्मदर्शी हो (पोसाहि ण) हमारा भरण-पोषण करो । ऐसा न करके (तुम) तुम (लोगं परं पि) इस लोक और परलोक को भी (जहासि) बिगाड़ रहे हो या कर्त्तव्य छोड़ रहे हो, अत: (णो घोस) हमारा पालन-पोषण करो।
भावार्थ __साधु को ममत्ववश अपना जानकर उसके माता, पिता, पुत्र और स्त्री आदि स्वजन (कभी-कभी) ऐसी शिक्षा भी देने लगते हैं कि तुम हमारी परिस्थिति को देख रहे हो, या जानते हो, प्रत्यक्षदर्शी हो, अथवा तुम दूरदर्शी या सूक्ष्मदर्शी हो; अब हमारा भरण-पोषण करो। अन्यथा तुम इस लोक और परलोक दोनों के कर्तव्य को छोड़ते हो, दोनों को बिगाड़ रहे हो । अतः सौ बात की एक बात है, जिस किसी तरह से भी हमारा पालनपोषण करो।।
व्याख्या
और भी अनुकूल उपसर्ग
जब ममत्वग्रस्त स्वजनों के पूर्वोक्त दाँव नहीं चलते और वे साधु को पुन: गृहवास में लाने असमर्थ हो जाते हैं, तब एक नया दाँव और चलाते हैं। वे मोहममता से लबालब भरे स्वजन (माता-पिता, पुत्र-स्त्री आदि) साधु को नवदीक्षित (अपरिपक्व) जानकर उसे संयमी जीवन से भ्रष्ट करने हेतु बहुत ही अधुर शब्दों में स्नेहपूर्वक कहते हैं-- "देखो, हम तुम्हारे बिना अत्यन्त दुःखी हैं । तुम्हीं हमारे एकमात्र आधार हो । तुम्हारे सिवाय हमारा कोई पालन-पोषण करने वाला नहीं है। तुम हमारी परिस्थिति को जानते हो, तुमने हमारी स्थिति देखी है, तुम हमारी स्थिति के प्रत्यक्षदर्शी हो। अथवा तुम स्वयं दूरदर्शी या सूक्ष्मदर्शी हो । अतः घर चलकर हमारा भरण-पोषण करो। अन्यथा, प्रव्रज्या लेकर तुमने इस लोक को तो बिगाड़ ही लिया, अब हमें छोड़कर परलोक को भी बिगाड़ रहे हो । हमारा पालन
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