Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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वैतालीय : द्वितीय अध्ययन-द्वितीय उद्देशक
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भावार्थ अहिंसामहाव्रती साधु शून्यगृह का द्वार न तो बन्द करे और न ही खोले । किसी के पूछने पर कुछ भी न बोले, तथा उस सूने घर का कूड़ाकर्कट भी न निकाले और न तृण भी बिछाए।
व्याख्या
शून्यगृह में निवास की साधुमर्यादा पूर्वोक्त गाथा में एकाकी विचरण तथा एकाकी स्थान, शयन एवं आसन की समाधिवान् साधक लिए प्रेरणा थी, किन्तु इन सबके साथ जो कड़ी शर्ते रखी गयी थीं, उनके सहित इस उपदेश के अनुसार आचरण करने पर एकान्त स्थान में एकाकी निवास, आसन, शयन आदि की क्या मर्यादा होगी? इसी के सम्बन्ध में शास्त्रकार इस गाथा में कहते हैं. -'णो दोहे ... णो संथरे तणं ।'
आशय यह है कि कदाचित् साधु एकान्त एकाकी स्थान, आसन या शयन आदि की दृष्टि से किसी सूने (जिस मकान में कोई भी व्यक्ति न रहता हो, कोई पशु आदि वहाँ न रहते हों, ऐसे जनशून्य) मकान में उसके मालिक या अधिकारी अथवा शक्रेन्द्र की अनुमति (आज्ञा) लेकर रहना चाहे, कायोत्सर्ग, स्वाध्याय आदि की दृष्टि से आसन या शयन जमाना चाहे तो वह निम्नोक्त मर्यादाओं का अहिंसा की दृष्टि से पालन करे । कदाचित् सर्दी या वर्षा के कारण उसे उक्त सूने मकान का दरवाजा (खिड़की या कपाट) बन्द करने की इच्छा हो तो उसे रोके, यानी दरवाजा बन्द न करे, अगर दरवाजा बन्द हो और गर्मी आदि के कारण साधु उसे खोलना चाहे तो न खोले, न उसे हिलाए या बार-बार धक्का दे । द्वार खोलने और बन्द करने का निषेध इसलिए किया गया है कि वर्षों या काफी अर्से से जो मकान सूना पड़ा रहता है, उसमें जाले जम जाते हैं, मकड़ी आदि कई जीव आकर वहाँ बसेरा कर लेते हैं, चिड़िया, कबूतर आदि अपना घोंसला बना लेते हैं, अन्य कई कीड़े, सर्प, बिच्छू आदि जन्तु भी वहाँ अपना डेरा जमा लेते हैं। ऐसी स्थिति में साधु यदि उस जीवों से आकीर्ण मकान के द्वार को बन्द करने खोलने या हिलाने जाएगा, तो वहाँ बैठे हुए बहुत-से जीवों की विराधना (हिंसा) होने की सम्भावना है। कदाचित् किसी जहरीले जीव को आघात पहुँचे तो वह उसकी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उस साधु पर आक्रमण कर बैठे या उसे काट खाए तो अपने जीवन की तथा संयमी जीवन की विराधना होनी सम्भव है। इस दृष्टि से साधु उक्त परीषह (सर्दी-गर्मी-वर्षा आदि) को सहन कर ले किन्तु अहिंसाधर्म के पालन की दृष्टि से द्वार न बन्द करे, न खोले । सूने घर में साधु को कायोत्सर्ग में खड़े या बैठे देखकर बहुत-से लोग सन्देहवश उसे चोर, डाकू, लुटेरा, गुण्डा या व्यभिचारी समझ
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