Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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वैतालीय : द्वितीय अध्ययन-द्वितीय उद्देशक
३३१ अथवा समताधर्म को अपने जीवन से प्रगट करे । (सुहुमे उ) संयम की सूक्ष्मतागहराई के सम्बन्ध में (सया) सदैव (अलूसए) अविराधक होकर रहे। (णो कुज्झे) तथा क्रोध न करे, (णो माणी माहणे) एवं अहिंसाधर्मी (माहन) मुनि मानी न बने।
भावार्थ स्थितप्रज्ञ या प्रज्ञा से परिपूर्ण साधक सदा कषायों पर विजय प्राप्त करे, और समताधर्म का आदर्श स्थापित करे, समताधर्म का ही उपदेश दे । सूक्ष्म से सूक्ष्म संयम के प्रति सदा अविराधक होकर रहे । अहिंसाधर्मी मुनि किसी पर कोप न करे और न ही अहंकार करे।
व्याख्या
स्थितप्रज्ञ समताधर्मो मुनि का धर्म शास्त्रों का अध्ययन-मनन एवं अनुशीलन-परिशीलन करने तथा साध-जीवन के आचार-विचार के परिपालन एवं रत्नत्रय के अभ्यास से जिसकी प्रज्ञा उन्नत, स्थिर एवं परिपूर्ण हो गई है, उस स्थितप्रज्ञ समताधर्मी मुनि को कषायों एवं इन्द्रियविषयों के प्रसंग उपस्थित होने पर क्या करना चाहिए ? यही इस गाथा में शास्त्रकार ने बताया है ----'पण्णासमत सया जए समताधम्ममुदाहरे भुणी।' आशय यह है कि शास्त्रों के अभ्यास से परिपक्वमति एवं नौ तत्त्वों के ज्ञाता समताधर्मी मुनि कषायों के विषय में भगवद्वाणी के प्रकाश में चिन्तन करे
कोहो य माणो य अणिग्गहीया, माया य लोभो य पवड्ढमाणा । चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाई पुणब्भवस्स ॥
अर्थात्-..- क्रोध और मान पर यदि अंकुश न रखा जाय तथा माया और लोभ बढ़ते जाएँ तो ये चारों कषाय अपने आप में परिपूर्ण होकर पुनर्भव (बार-बार जन्ममरण) के मूल को सींचते हैं।
इस प्रकार कषायों को संसार के बीज समझकर इन पर सदा विजय प्राप्त करनी चाहिए। हमेशा जागरूक रहना चाहिए कि कहीं कषाय आकर मेरे जीवन पर हावी न हो जाए। और केवल कपाय ही नहीं, विषयों-पाँचों इन्द्रियों और मन के विषयों से भी सदा सावधान रहना चाहिए । बे भी साधक पर कहीं हावी न हो जाएँ, साधक को पछाड़ न दें। मनोज्ञ विषयों पर राग, आसक्ति या मोह तथा अमनोज्ञ विषयों पर द्वष, घृणा या अरुचि न करे। अर्थात् उन पर विजय पाने की कोशिश करे। कैसे विजय पाए ? इसके उत्तर में शास्त्रकार स्वयं कहते हैं-समताधर्म का उदाहरण (नमूना) प्रस्तुत करे। यद्यपि वृत्तिकार 'समताधम्म
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