Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
अन्वयार्थ (एवं) इस प्रकार (एगे उ) कोई (पासत्था') पाशस्थ या पार्श्वस्थ कहते हैं, (तं) वे (भुज्जो) बार-बार (विप्पगभिया) नियति को कर्ता कहने की धृष्टता करते है । (एवं) इस प्रकार (उठ्ठिया संता) अपने सिद्धान्तानुसार पारलौकिक क्रिया में उपस्थित होकर भी (ते) वे (दुक्खविमोक्खया) दुःख से मुक्त (न) नहीं हैं ।
भावार्थ नियति को ही एक मात्र सुख दुःख का कर्ता मानने वाले नियतिवादी पाश में पूर्वोक्त प्रकार से जकड़े हए एकमात्र नियति के ही कर्ता होने की डींग हाँकते हैं। वे अपने सिद्धान्तानुसार परलोक की क्रिया करते हुए भी दुःखों से मुक्त नहीं हो पाते ।
व्याख्या
नियतिवादियों के मिथ्यात्व का फल
‘एवं'-पूर्वोक्त प्रकार से एकान्त नियति की प्ररूपणा करने वाले नियतिवादियों के लिए ‘एवं' शब्द प्रयुक्त किया गया है । अर्थात् जो नियतिवादी अवश्यंभावी (नियति) को ही बिना कारण कर्ता मानते हैं और अपनी इस एकान्त मिथ्या प्ररूपणा की सत्यता की बार-बार दुहाई देते फिरते हैं । वे अपने इस मिथ्यात्व के फलस्वरूप पाश (बन्धन) में जकड़े हुए की तरह कर्मपाश (कर्मबन्धन) में जकड़े हुए रहते हैं । अथवा पुरुष, काल, ईश्वर, स्वभाव आदि कारण चतुष्टय को छोड़कर जो एक मात्र नियति को ही मानने के कारण एक पार्श्व में-एक किनारे स्थित (खड़े) हो गए हैं, यानी पार्श्वस्थ हो गये हैं।
___एवं उवट्ठिया संता-इस पंक्ति का आशय यह है कि एक तरफ तो वे पूर्वोक्त प्रकार से अकेली नियति का पल्ला पकड़े हुए हैं, किन्तु दूसरी ओर नियतिवाद के सिद्धान्त के विरुद्ध अपना परलोक सुधारने के लिए अपने मत द्वारा मान्य विविध क्रियाएँ भी करते हैं और जनता को इस प्रकार से वैराग्य का डौल दिखाकर झांसे में डालते हैं । यही कारण है कि वे इस आत्मवंचना के फलस्वरूप मिथ्यात्व के कारण अनेक अशुभ कर्मबन्धन में जकड़ जाने के कारण अपनी आत्मा को जन्मजरा-मरण आदि के दुःखों से मुक्त नहीं कर पाते । यह इस गाथा का आशय है।
१. 'पासत्था' शब्द के संस्कृत में दो रूप होते हैं-~-पाशस्थाः और पार्श्वस्थाः ।
यहाँ 'पाशस्था' शब्द ही अधिक संगत लगता है। पाश इव पाश: कर्मबन्धनं, तत्र स्थिताः पाशस्थाः।
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